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मृदा परीक्षण की विधि एवं पानी जांच की विधि Very Easy 2023

  • मृदा परीक्षण की विधि 

मिट्टी परीक्षण की विधि –  मृदा पोषण प्रदान करने की क्षमता का निर्धारण करने की एक रासायनिक विधि हैं। फसलों की उपज में वृद्वि के लिए संतुलित उर्वरको का उपयोग अति आवश्यक है। संतुलित उर्वरक उपयोग के लिए मृदा की जॉच सबसे महत्वपूर्ण हैं। मृदा परीक्षण से खेत में उपलब्ध पोषक तत्वो की मात्रा मृदा की भौतिक संरचना, अम्लीयता, क्षरीयता, कार्बनिक पदार्थ तथा किसी फसल विशेष के लिए मृदा की स्थिति का पता चलता है।

जो कि फसल योजना बनाने के लिए बहुत ही आवश्यक है। मृदा परीक्षण के अभाव मे कभी कभी किसान उसी पोषक तत्वो का प्रयोग अधिक मात्रा में करने लगता हैं, जो पोषक तत्व मृदा में अधिक मात्रा में उपस्थित हैं। इस प्रकार उर्वरकों के प्रयोग से आर्थिक हानि के साथ-साथ उस पोषक तत्व के अधिक उपयोग से फसल की उपज पर भी प्रतिकुल प्रभाव पड़ सकता हैं।

मृदा परीक्षण के उद्देश्य क्या होता है ?

1. मृदा में उपलब्ध पोषक तत्वों का सही-सही मात्रा ज्ञात करना ।

2. मृदा के पोषण प्रदान करने की क्षमता ज्ञात करके इसके आधार पर फसलों के अनुसार उर्वरक डालने की सिफारिश करना

3. मृदा विकार जैसे अम्लीयता, क्षारीयता एवं लवणता के बारे में सूचनाएं एकत्रित करना ।

4. मृदा उर्वरता, मानचित्रों के लिए मृदा वर्गीकरण की दृष्टि से मृदा समूह की जानकारी एकत्रित करना ।

5. मृदा की भैतिक संरचना के बारे में जानकारी प्राप्त करना ।

6. उपजाऊ शक्ति प्राप्त करना ।

7. फसलों एवं फलदार वृक्षों के चयन में सुविधा ।

8. उत्पादन लागत में कमी करना ।

मृदा परीक्षण क्यों कराना चाहिए ?

पौधों को अपना जीवन चक्र पूरा करने एवं अच्छी वृद्वि एवं विकास करने के लिए लगभग 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इनमें से कार्बन, हाइड्रोजन एवं आक्सीजन पौधों में सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है। इन तीन पोषक तत्वों की पूर्ति पौधे पानी एवं वायु से करते हैं। इसके बाद बचे 13 पोषक तत्वों में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, गंधक, कैल्शियम तथा मैग्नेशियम अधिक मात्रा में तथा जिंक, कापर, आयरन, मैगनीज, बोरान, मालिब्डेनम तथा क्लोरिन कम मात्रा में पाए जाते हैं।

उपरोक्त पोषक तत्वों में नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटेशियम एक ऐसे तत्व है जो कि अधिक मात्रा में पौधों द्वारा शोषित किये जाते है तथा साधारणतः उर्वरक द्वारा दिए जाते हैं। अन्य पोषक तत्वों की पूर्ति मृदा से ही हो जाती है। लेकिन लगातार एवं सघन फसल लेने के कारण इन पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।

तथा कार्बनिक खादों के प्रयोग न करने से उर्वरता भी असंतुलित हो गई है तथा मृदा उर्वरता में भी गिरावट आ रही है। जिससे फसलों की उपज रूक सी गई है। यह जानकारी की कौन सी पोषक तत्व कितनी मात्रा में है और कितनी मात्रा में प्रयोग करनी है इसका पता केवल मृदा परीक्षण से ही संभव हो पाती हैं।

मृदा के नमूने के लिए स्थान का चुनाव मृदा एवं पानी की जांच कराने हेतु लिये जाने वाले नमूने का बहुत अधिक महत्व होता है क्योंकि इस नमूने के आधार पर ही खेत की मृदा व पानी के बारे में परिणाम दिए जाते है। अतः नमूना बहुत सावधानी पूर्वक लेना चाहिए। जब पूरा खेत मृदा संरचना, संगठन एवं रंग आदि में समान हो तो पूरे खेत को एक इकाई के रूप में देखना चाहिए और पूरे खेत में से 10-15 जगह से नमूने लेकर उस नमूने को मिलाकर एक मिश्रित नमूना बना लेना चाहिए।

यदि मृदा का रंग ढलान संगठन, संरचना एवं पोषकता आदि से भिन्न हो तो ऐसे प्रत्येक भिन्न क्षेत्र को एक इकाई समझना चाहिए। अतः ऐसी स्थिति में प्रत्येक क्षेत्रो से अलग-अलग मिश्रित नमूने लेने चाहिए। जिस स्थान पर ताजा खाद, क्यारियों की मेड़ो, पानी की नाली, दलदल स्थान पेड़ के पास की जगह, कम्पोस्ट के गड्ढे आदि स्थानों से मृदाके नमूने नही लेना चाहिए।

मृदा की नमूना लेते समय मृदा की गहराई का विशेष  ध्यान रखना चाहिए।

1. शस्य फसलें जैसे गेहूं, सरसों, चना, आदि बोये जाने वाले क्षेत्र में 0-15 से.मी. से लेने चाहिए।

2. घास वाले क्षेत्र से 0.-10 से.मी. से नमूने लेने चाहिए।

3. उद्यानिकी फसलों जैसे आंवला, बेर, नींबू के लिएए 0-60 से.मी. गहराई से मृदा के नमूने लेने चाहिए।

4. यदि खेत में लवणीय, क्षारीय मृदा हो तो उसका नमूना अलग से लेना चाहिए।

मृदा नमूना लेने की विधि-

1. खेत को समान गुणों वाले भागों में बाट कर अलग-अलग नमूना लेना चाहिए।

2. नमूना लेने के लिए प्रति हेक्टेयर 15-20 स्थानों का चयन करना चाहिए।

3. जमीन की उपरी सतह से घास इत्यादि को हटाकर साफ कर लेना चाहिए।

4. जिस स्थान पर कतारों में फसल बोई गई है, वहाँ पर कतारों के बीच से नमूना लेना चाहिए।

5. नमूना लेने के लिए खुरपी या फावड़े की सहायता से एक वी V -आकार का लगभग 15-20 से.मी. गहराई तक गड्ढा बनाकर फिर इसे दीवार के साथ किनारे की 2-2.5 से.मी. मृदा की परत समान रूप से लेनी चाहिए।

6. विभिन्न स्थान से एकत्रित नमूनों को साफ कपड़े पर डालकर फैला लें तथा अच्छी प्रकार मिलाकर चार भागों में बाटें, इस चार भागों मे से दो भाग निकाल दें तथा शेष भाग को फिर अच्छी तरह मिला कर पुनः चार भागों में बांट लें। दो भाग को निकाल लें तथा दो भाग को पुनः अच्छी तरह मिला लेंवे। इस प्रकार इस प्रक्रिया को तब तक करते रहें जब तक की नमूना 500 ग्राम न बचें।

7. नमूने में यदि ढेले हो तो उन्हे तोड़कर बारीक कर लेंवे यदि मृदा में नमी हो तो इसे छाया में सुखा लेंवें । नमूने को एक साफ कपड़े की थैली में भरकर तथा उसके साथ अपना नाम, पता, खेत का नाम, खसरा नं., क्षेत्र की मुख्य फसलें, जल निकास आदि का विवरण एवं किस फसल की सिफारिश करनी चाहिए (उसका नाम लिखना) इन सब का विवरण थैली में रखना चाहिए।

8. खेत के नमूने लेने के बाद प्रयोगशाला तक लाने पर उसमें किसी प्रकार की मिलावट नही होनी चाहिए। मूना हमेशा साफ सुधरें कपड़े या प्लास्टिक की थैले में लेना चाहिए। नमूने एकत्र करने वाली थैली पहले खाद, रासायनिक पदार्थ, उर्वरक के संपर्क में नही आया हुआ होना चाहिए। ?

मिट्टी परीक्षण

मृदा नमूना लेते समय ध्यान देने योग्य बातें 

1. नमूना खाद या कम्पोस्ट आदि वाले ढेर नीची जमीन या पानी के नाले के एकदम समीप नही होना चाहिए।

2. नमूने लिये जाने वाले स्थान पर ताजी खाद, चूना या अन्य कोई भूमि सुधारक रसायन आदि तत्काल न डाला गया हो।

3. खेत में उगे पेड़ के जड़ के समीप के स्थान से नमूना नही लेना चाहिए।

4. लवणता आदि के समस्या से ग्रस्त खेत से अलग नमूना लेना चाहिए।

5. वर्षा के बाद या तुरन्त उर्वरक उपयोग के बाद नमूना नही लेना चाहिए।

सिंचाई वाले पानी का नमूना एवं पानी परीक्षण  –

मृदा परीक्षण के साथ हमें सिंचाई में काम आने वाली पानी की भी जांच करवानी चाहिए। हमारे राज्य एवं जिलों में बहुत सारे कुओं का पानी खारा है। इस पानी से लगातार सिंचाई करते रहने से मृदा लवणीय व क्षारीय हो जाती है तथा उसमें पौधों की बढ़वार कम होने लगती है और पैदावार घट जाती है। पानी का नमूना एकत्रित करने के लिए आधे लीटर कांच या प्लास्टिक की बोतल उपयुक्त होती है।

सिंचाई पानी

नमूना लेने से पहले बोतल को अच्छी तरह से साफ पानी से धोना चाहिए और उसके बाद दो तीन बार नमूना लेने वाले पानी से साफ करते है, फिर उसमें नमूना भरते है। ट्यूब वैल तथा हैडपंप से पानी का नमूना लेना हो तो पहले आधा घंटा तक उसकों चलाते है फिर नमूना लिया जाता है। आधा लीटर पानी, नमूने के लिए पर्याप्त होता है।