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एक ही जगह के 2 खेतों का धान अलग – अलग क्यू दिखता है , और ऊपज भी दोनों खेत कम – ज्यादा क्यू आता है, जबकि मिट्टी एक , लगाने का तरीका एक , किस्म एक फिर भी जानिए

धान में अधिक उत्पादन कैसे लें 

अक्सर ऐसा देखने को मिलता है की एक ही जगह पर कई खेत है, उसकी मिट्टी भी सेम है, बोने की विधि भी एक जैसा है फिर भी ऊपर सभी किसानों का यह सभी खेतों का अलग-अलग क्यों आता है? यह अधिकतर किसानों का सवाल होता है । एक खेत में 30 से 35 क्विंटल तक उत्पादन होता है तो वही दूसरे खेत में 20 से 25 क्विंटल या 15 से 20 कुंटल प्रति एकड़ उत्पादन होता है।

जिंक और सल्फर

इसका प्रमुख कारण निम्न हो सकता है

1. बीज दर- बोता  धान के लिए प्रति एकड़ बीज दर 30 से 35 किलो होता है, लेकिन कुछ किसान बीज दर को बढ़ा देते हैं , 30 के जगह 40 से 45 किलो तक दाल देते हैं , जिससे धान बहुत घन हो जाता है , ठीक से कंसा भी नहीं आता , हवा पानी और खाद सभी पौधों को सही नहीं मिल पाने के कराड़ कमजोर हो जाते हैं , और इस कारण रोग और किट ज्यादा लगते हैं । वही जो सही बीज दर से खेती करता है उसका उत्पादन अच्छा आता है ।

2. धान की रोपाई में असावधानी – धान का रोपा 18-21 दिन या अधिकतर 25 दिन तक मे कर देना चाहिए , लेकिन कुछ किसान भाई 35 दिन 45 दिन तक नहीं लगाए रहते , उसके बाद रोपण कराते हैं , जिसके कारण सही समय में रोपण नहीं होने के कारण , कंसा कम आता है , पौधों का ओज कम हो जाता है जिसके कारण बढ़वार सही नहीं होता ।

कुछ किसान भाई हाइब्रिड धान के रोपण करते समय एक साथ 2 या 3 पौधा लगाते हैं , जबकि हाइब्रिड का सिर्फ एक पेड़ एक जगह लगाना चाहिए , ज्यादा पौधे लगाने से कोई भी पौधे जैसे कंपनी बताए हैं वैसा न कंसा देता है और न ही बढ़ता है , जिसके कारण उत्पादन कम होता है ।

3. निरीक्षण पथ ना छोड़ना – निरीक्षण पथ मतलब 4-5 फिट धान लगाने के बाद 1 फुट का खाली जगह छोड़ना । ऐसा करने से धान के खेत में खाद , किटनाशक डालने में आसानी होती है , साथ ही साथ शुद्ध हवा , पानी , सूर्य की रोशनी पौधों को पर्याप्त मिल पाता है , जिसके कारण पौधों का बढ़वार बहुत अच्छा होता है , किट रोग लगने का संभावना कम हो जाता है ।

4. बन नाशक का ज्यादा डोज डालना – भले ही किसान धान को ना मारने वाले खरपतवार नाशक का प्रयोग करे , लेकिन जरूरत से ज्यादा मात्रा में डालने से उसका विपरीत प्रभाव धान के बढ़वार पर पड़ता है । इसलिए जैसे कॉम्पनी के लीफलेट में लिखा है वैसे ही और उतना मात्रा में ही सही समय में बन नाशक का प्रयोग करें ।

5. पोटाश का बहुत कम मात्रा डालना – धान के खेत को फॉसफोरस जो DAP और राखड़ में होता है उसके बराबर मात्रा में पोटाश का जरूरत होता है , लेकिन बहुत बार देखा गया है की किसान सिर्फ 10 से 12 किलो प्रति एकड़ पोटाश दाल देते है या कई किसान तो सिर्फ DAP, यूरिया  और राखड़ ही ज्यादा मात्रा में डालते हैं , जबकि पोटाश प्रति एकड़ 30 से 40 किलो डालना ही चाहिए ।

मिट्टी परीक्षण कराने पर अगर पोटाश का मात्रा खेत में कम है तो अनुसंसा अनुसार डालना चाहिए । पोटाश एक तिहाई हिसा बुवाई या खेत की अंतिम तयारी के समय तथा बाँकी बचा मात्रा गभोट अवस्था के प्रारंभ में डालना चाहिए ।

पोटाश एक बहुत ही जरूरी उर्वरक है धान के लिए इसकी कमी से धान की बाली बहुत छोटी , दानों का कम भराया होना , दानों में चमक की कमी , पौधों की पाती सकरी और पीली हो जाति है तथा बढ़वार रुक जाता है ।

6. यूरिया खाद का जरूरत से ज्यादा उपयोग करना – यूरिया को 3 से 4 बार में डालना चाहिए , प्रति एकड़ 1.5 से 2 बोरी यूरिया डालना चाहिए । लेकिन ज्यादा मात्रा में यूरिया डालने से धान की पत्ती ज्यादा चौड़ी और ज्यादा गहरे हरे रंग का हो जाता है , पौधे मीठा हो जात है , जिसके कारण किट और रोग ज्यादा लगता है , धान का बढ़वार जरूरत से ज्यादा होने के कारण पकने के बाद गिर जाता है । माहू का संक्रमण बढ़ जाता है ।

7. किटनाशक और रोग नाशक दवाई का कम उपयोग – खेत का रेगुरल निरीक्षण करते रहना चाहिए , कुछ भी रोग एवं किट का लक्षण दिखे तो पौधे को उखाड़ कर अपने कृषि विभाग के अधिकारी या कृषि केंद्रों में ले जाकर सही दवाई डालना चाहिए ।

8. जिंक और सल्फर डालने के फायदे – प्रति एकड़ जिंक 7-10 किलो तथा सल्फर भी 8-10 किलो डालना चाहिए , ये दोनों खाद बहुत ही अच्छी खाद होती है , इसका उपयोग से धान का ग्रोथ बहुत अच्छा होता है साथ ही साथ कंसा भी बहुत अच्छा आता है ।