धान का जीवाणु झुलसा रोग (Bacterial Leaf Blight) – BLB
इसका प्रमुख लक्षण –
यह रोग 2 प्रकार का होता है । पहला पत्तीयों के किनारे में धारीनुमा लंबी पट्टी बन जाती है और धान की पत्तियां हरी ही रहती है और दूसरा पत्तीयों के किनारे या पत्तीयों का ऊपरी भाग सुख जाता है और पत्तियां पीली होने लगती हैं , लंबी पट्टियां नहीं बनती , दोनों लक्षण ही जीवाणु झुलसा रोग का ही है ।
सुबह के समय प्रभावित पत्तीयों को देखने पर उसमें हल्का लाल – पीला रंग का ओस के जैसे बूंद देखने को मिल जाता है , जो की इस रोग के जीवाणुओं का समूह होता है ।
इस रोग के प्रारंभ में पत्तीयों में गहरे हरे रंग का छोटे -छोटे धब्बे जैसा आकार बन जाता है , फिर वह लंबा एवं पीला रंग में बदल जाता है ।
जब यह रोग उग्र अवस्था में होता है तो पूरा धान का पौधा सुख कर पैरा जैसे हो जाता है । बालियाँ भी बहुत छोटी छोटी आती है । धान का बहुत हानिकारक रोग है ।
धान का जीवाणु झुलसा रोग का फैलाव –
यह रोग वातावरण में ज्यादा नमी (ऊमस वाला मौसम) और ज्यादा तापमान में ज्यादा फैलता है । यह जीवाणु जनित रोग है । यह खेत के पानी के माध्यम से एक खेत से दूसरे खेत में फैलता है । यह पौधों में जहां पर Damage/ Enjory होता है वही से पौधों के अंदर घुसता है । यह रोग बीज जनित भी होता है , मतलब बीज यह रोग का किटाणु होता है , जो बोने पर खेत में आ जाता है ।
धान का जीवाणु झुलसा रोग का नियंत्रण के उपाय –
जिन खेतों में हर साल यह रोग होता है उसमें जीवाणु झुलसा रोग प्रतिरोधक किस्मों जैसे – गायत्री , दुर्गा , वर्सधान , रंभा और कंचन इत्यादि को लगाना चाहिए ।
धान को बोने से पहले 54 डिग्री Celcius तक पानी को गर्म करके 10 मिनट तक धान को डूबा कर रखना चाहिए फिर निकालकर उसे ठंडा करके बोना चाहिए । इससे बीज जनित रोगाणु नष्ट हो जाते हैं ।
धान का रोपाई के समय पौधों का जड़ को streptomycin 150 mg प्रति लिटर पानी या कापर ऑक्सी क्लोराइड 1 ग्राम प्रति लिटर पानी में डूबाकर रोपाई करना चाहिए ।
अगर खेत में इसका लक्षण दिखे तो तुरंत निम्न दवाई का छिड़काव 8-10 दिन के अंतराल पर 2 बार करना चाहिए। खेत में यूरिया नहीं डालना चाहिए , अगर संभव हो तो 10-15 kg पोटाश प्रति एकड़ अतिरिक्त मात्रा में डालना चाहिए ।
1. Streptomycine sulphate 90 % + Tetracycline hydrochloride 10 % का 100 से 150 mg प्रति लिटर
2. Streptomycin sulphate 9 % +Tetracycline Hydrochlorine 1 % (यह Plantomycin के नाम से आता है)
3. Copper Hydroxide 53.8% – 600 ग्राम प्रति एकड़
4. Copper oxy chloride (COC) – 2 ग्राम प्रति लिटर पानी
नोट – ऊपरोक्त सभी दवाईयों का रासायनिक नाम है , बाजार में यह कई नामों से मिल सकता है , लेकिन टेक्निकल नाम ऊपरोक्त होना चाहिए । दवाई अच्छी कंपनी का ही लेवें । ऊपरोक्त दवाइयों को प्राथमिकता के क्रम में रखा गया है । ऊपरोक्त सभी इस रोग के नियंत्रण के लिए सही है। कोई भी एक दवाई का चुनाव इस रोग के नियंत्रण के लिए कर सकते हैं । तीसरा और चौथा नंबर की दवाई जीवाणुनाशक के साथ साथ , फफूँदनाशक के जैसा भी काम करता है ।