अपशिष्ट किसे कहते हैं: इसके प्रबंधन का वैज्ञानिक विधि 2024

अपशिष्ट: एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण और प्रबंधन

अपशिष्ट किसे कहते हैं?

अपशिष्ट, जिसे हम कचरा या गंदगी भी कहते हैं, वह अनुपयोगी या त्याज्य पदार्थ है जो किसी प्रक्रिया के बाद बच जाता है। यह मानव गतिविधियों, जैसे घरों, उद्योगों, कृषि और अन्य व्यावसायिक गतिविधियों का परिणाम हो सकता है। अपशिष्ट विभिन्न रूपों में हो सकता है, जैसे ठोस, तरल और गैसीय।

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अपशिष्ट के प्रकार:

  • ठोस अपशिष्ट: इसमें घरेलू कचरा (जैसे खाद्य अवशेष, प्लास्टिक, कागज, धातु, कांच), औद्योगिक कचरा (जैसे राख, धातु स्क्रैप, रासायनिक अवशेष), कृषि अपशिष्ट (जैसे फसल अवशेष, पशु मल) और निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट (जैसे ईंट, पत्थर, लकड़ी) शामिल हैं।
  • तरल अपशिष्ट: इसमें घरेलू अपशिष्ट जल (जैसे रसोई, स्नानघर और शौचालय का पानी), औद्योगिक अपशिष्ट जल (जैसे कारखानों से निकला रासायनिक पानी), और कृषि अपशिष्ट जल (जैसे उर्वरकों और कीटनाशकों से दूषित पानी) शामिल हैं।
  • गैसीय अपशिष्ट: इसमें उद्योगों, वाहनों और अन्य स्रोतों से निकलने वाली गैसें (जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड) शामिल हैं।

अपशिष्ट किसे कहते हैं

अपशिष्ट के वैज्ञानिक कारण:

अपशिष्ट का मुख्य कारण मानव गतिविधियाँ हैं। जब हम किसी वस्तु का उपयोग करते हैं, तो कुछ हिस्सा अनुपयोगी रह जाता है, जो अपशिष्ट बन जाता है। उदाहरण के लिए, जब हम भोजन करते हैं, तो कुछ हिस्सा बच जाता है जो खाद्य अपशिष्ट कहलाता है। इसी तरह, उद्योगों में उत्पादन प्रक्रियाओं के दौरान विभिन्न प्रकार के अपशिष्ट उत्पन्न होते हैं।

गांवों में अपशिष्ट प्रबंधन के व्यावहारिक तरीके

गांवों में अपशिष्ट प्रबंधन शहरों से थोड़ा अलग होता है, क्योंकि गांवों में अपशिष्ट की प्रकृति और मात्रा अलग होती है। गांवों में मुख्य रूप से जैविक अपशिष्ट (जैसे कृषि अवशेष, पशु मल, खाद्य अवशेष) अधिक मात्रा में होता है, जबकि प्लास्टिक और अन्य गैर-जैविक अपशिष्ट की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है। इसलिए, गांवों के लिए अपशिष्ट प्रबंधन के कुछ व्यावहारिक तरीके इस प्रकार हैं:

1. स्रोत पर पृथक्करण:

शहरों की तरह, गांवों में भी अपशिष्ट को स्रोत पर ही अलग-अलग श्रेणियों में बाँटना चाहिए:

  • जैविक अपशिष्ट (Biodegradable Waste): खाद्य अवशेष, फल और सब्जियों के छिलके, कृषि अवशेष (जैसे फसल अवशेष, भूसा), पशु मल आदि।
  • गैर-जैविक अपशिष्ट (Non-biodegradable Waste): प्लास्टिक, कागज, धातु, कांच, कपड़ा आदि।

2. कम्पोस्टिंग:

गांवों में कम्पोस्टिंग अपशिष्ट प्रबंधन का एक बहुत ही प्रभावी तरीका है। जैविक अपशिष्ट को खाद में बदलकर खेतों में उपयोग किया जा सकता है, जिससे उर्वरकों पर निर्भरता कम होती है और मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। कम्पोस्टिंग के कुछ तरीके इस प्रकार हैं:

  • नाडेप कम्पोस्टिंग: यह एक सरल और प्रभावी तरीका है जिसमें एक गड्ढे में जैविक अपशिष्ट को परतों में डालकर खाद बनाई जाती है।
  • वर्मी कम्पोस्टिंग: इसमें केंचुओं का उपयोग करके जैविक अपशिष्ट को खाद में बदला जाता है। यह खाद बहुत ही पोषक होती है।

3. बायोगैस उत्पादन:

पशु मल और अन्य जैविक अपशिष्ट का उपयोग बायोगैस उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है। बायोगैस का उपयोग खाना पकाने और रोशनी के लिए किया जा सकता है, जिससे ईंधन की बचत होती है और प्रदूषण कम होता है।

4. पुन: उपयोग:

गांवों में कई वस्तुओं को बार-बार उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, पुराने कपड़ों का उपयोग पोछे बनाने में, प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग पानी भरने में और धातु के डिब्बों का उपयोग भंडारण के लिए किया जा सकता है।

5. पुनर्चक्रण:

गांवों में उत्पन्न होने वाले गैर-जैविक अपशिष्ट (जैसे प्लास्टिक, कागज, धातु) को पुनर्चक्रण के लिए शहरों में भेजा जा सकता है। इसके लिए गांवों में संग्रहण केंद्र स्थापित किए जा सकते हैं।

6. जागरूकता और शिक्षा:

गांवों में अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में जागरूकता फैलाना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए:

  • ग्राम पंचायतों द्वारा जागरूकता अभियान चलाना चाहिए।
  • स्कूलों में अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में शिक्षा देनी चाहिए।
  • नुक्कड़ नाटकों और अन्य माध्यमों से लोगों को जागरूक करना चाहिए।

7. सामुदायिक भागीदारी:

गांवों में अपशिष्ट प्रबंधन में समुदाय की भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण है। ग्राम पंचायतों को अपशिष्ट प्रबंधन योजनाओं में लोगों को शामिल करना चाहिए और उन्हें प्रशिक्षित करना चाहिए।

8. सरकारी योजनाओं का लाभ:

सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न अपशिष्ट प्रबंधन योजनाओं का लाभ उठाना चाहिए। स्वच्छ भारत मिशन जैसी योजनाओं के तहत गांवों में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए वित्तीय सहायता और तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है।

9. प्लास्टिक का कम उपयोग:

गांवों में प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के लिए लोगों को जागरूक करना चाहिए। इसके लिए कपड़े के थैलों और अन्य विकल्पों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

10. उचित निपटान:

जो अपशिष्ट पदार्थ पुनर्चक्रित या कम्पोस्ट नहीं किए जा सकते, उन्हें उचित तरीके से गड्ढों में दबा देना चाहिए या अन्य उपयुक्त स्थानों पर निपटाना चाहिए।

इन व्यावहारिक तरीकों को अपनाकर गांवों में अपशिष्ट प्रबंधन को बेहतर बनाया जा सकता है और एक स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण बनाया जा सकता है। यह न केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद है बल्कि गांवों के आर्थिक विकास में भी योगदान देता है।

शहरों में अपशिष्ट प्रबंधन के व्यावहारिक तरीके

शहरी क्षेत्रों में अपशिष्ट प्रबंधन एक गंभीर चुनौती है, लेकिन कुछ व्यावहारिक तरीकों को अपनाकर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। ये तरीके न केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद हैं बल्कि शहरों को स्वच्छ और स्वस्थ बनाने में भी मदद करते हैं।

अपशिष्ट किसे कहते हैं

1. स्रोत पर पृथक्करण (Segregation at Source):

यह अपशिष्ट प्रबंधन का सबसे बुनियादी और महत्वपूर्ण तरीका है। इसमें घरों, दुकानों और अन्य स्रोतों पर ही कचरे को अलग-अलग श्रेणियों में बाँटा जाता है, जैसे:

  • गीला कचरा (Wet Waste): खाद्य अवशेष, फल और सब्जियों के छिलके, बचा हुआ खाना आदि।
  • सूखा कचरा (Dry Waste): प्लास्टिक, कागज, धातु, कांच, कपड़ा आदि।
  • खतरनाक कचरा (Hazardous Waste): बैटरी, बल्ब, रसायन, दवाइयाँ आदि।

स्रोत पर पृथक्करण से पुनर्चक्रण और कम्पोस्टिंग की प्रक्रिया आसान हो जाती है।

2. कम्पोस्टिंग (Composting):

गीले कचरे को खाद में बदलने की प्रक्रिया कम्पोस्टिंग कहलाती है। यह खाद पौधों के लिए बहुत उपयोगी होती है। शहरों में घरों में या सामुदायिक स्तर पर कम्पोस्टिंग की जा सकती है।

3. पुनर्चक्रण (Recycling):

सूखे कचरे में से प्लास्टिक, कागज, धातु और कांच जैसी वस्तुओं को पुनर्चक्रित किया जा सकता है। इससे नए उत्पादों का निर्माण होता है और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण होता है। शहरों में पुनर्चक्रण केंद्रों की स्थापना को प्रोत्साहित करना चाहिए।

4. 3R का पालन (Reduce, Reuse, Recycle):

  • कमी (Reduce): अपशिष्ट उत्पादन को कम करना सबसे महत्वपूर्ण है। इसके लिए वस्तुओं का कम उपयोग करना चाहिए, पुन: प्रयोज्य वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए और अपशिष्ट पैदा करने वाले उत्पादों से बचना चाहिए।
  • पुन: उपयोग (Reuse): वस्तुओं को बार-बार उपयोग करना पुन: उपयोग कहलाता है। उदाहरण के लिए, प्लास्टिक की बोतलों को पानी भरने के लिए बार-बार उपयोग करना।
  • पुनर्चक्रण (Recycle): अपशिष्ट पदार्थों को नए उत्पादों में बदलना पुनर्चक्रण कहलाता है।

5. अपशिष्ट संग्रहण और परिवहन में सुधार:

शहरों में अपशिष्ट संग्रहण और परिवहन की व्यवस्था को सुचारू बनाना चाहिए। इसके लिए:

  • नियमित रूप से कचरा उठाना चाहिए।
  • कचरा उठाने के लिए उचित वाहनों का उपयोग करना चाहिए।
  • कचरा संग्रहण केंद्रों को साफ और व्यवस्थित रखना चाहिए।

6. जागरूकता और शिक्षा:

अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में लोगों को जागरूक करना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए:

  • जागरूकता अभियान चलाना चाहिए।
  • स्कूलों और कॉलेजों में अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में शिक्षा देनी चाहिए।
  • सामुदायिक कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए।

7. प्रौद्योगिकी का उपयोग:

अपशिष्ट प्रबंधन में प्रौद्योगिकी का उपयोग करके इसे और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, अपशिष्ट को ऊर्जा में बदलने वाली तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है।

8. सरकारी और निजी भागीदारी:

अपशिष्ट प्रबंधन में सरकारी और निजी क्षेत्रों की भागीदारी महत्वपूर्ण है। सरकार को नीतियाँ बनानी चाहिए और निजी कंपनियों को अपशिष्ट प्रबंधन के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

9. नियमों का पालन:

अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित नियमों का कड़ाई से पालन करना चाहिए। नियमों का उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना लगाना चाहिए।

10. विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन (Decentralized Waste Management):

विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन एक ऐसी प्रणाली है जिसमें अपशिष्ट का प्रबंधन उसके उत्पादन के स्रोत के पास ही किया जाता है, बजाय इसके कि उसे किसी केंद्रीय स्थान पर ले जाया जाए। यह पारंपरिक केंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली के विपरीत है, जिसमें पूरे शहर या क्षेत्र का कचरा एक ही जगह पर एकत्रित और संसाधित किया जाता है।

विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन के मुख्य पहलू:

  • स्थानीय स्तर पर प्रबंधन: अपशिष्ट का प्रबंधन घरों, समुदायों, इमारतों या छोटे क्षेत्रों में ही किया जाता है।
  • स्रोत पर पृथक्करण: कचरे को गीला, सूखा और खतरनाक कचरे में स्रोत पर ही अलग किया जाता है।
  • स्थानीय प्रसंस्करण: कम्पोस्टिंग, बायोगैस उत्पादन, पुनर्चक्रण और अन्य तकनीकों का उपयोग करके अपशिष्ट को स्थानीय स्तर पर संसाधित किया जाता है।
  • कम परिवहन: कचरे को लंबी दूरी तक ले जाने की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे परिवहन लागत और प्रदूषण कम होता है।

बड़े शहरों में, विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन एक प्रभावी तरीका हो सकता है। इसमें छोटे-छोटे क्षेत्रों में अपशिष्ट का प्रबंधन किया जाता है, जिससे परिवहन और निपटान की समस्या कम होती है। इन व्यावहारिक तरीकों को अपनाकर शहरों में अपशिष्ट प्रबंधन को बेहतर बनाया जा सकता है और एक स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण बनाया जा सकता है।

अपशिष्ट प्रबंधन के लाभ:

  • पर्यावरण प्रदूषण में कमी।
  • स्वास्थ्य में सुधार।
  • प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण।
  • ऊर्जा उत्पादन।
  • रोजगार सृजन।

उपयोगी वेबसाइट और यूट्यूब वीडियो:

  • स्वच्छ भारत मिशन: यह भारत सरकार की एक पहल है जिसका उद्देश्य स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करना है। आप इसकी वेबसाइट (https://swachhbharatmission.gov.in/) पर अधिक जानकारी पा सकते हैं।
  • सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE): यह एक गैर-सरकारी संगठन है जो पर्यावरण और विकास के मुद्दों पर काम करता है। इसकी वेबसाइट (https://www.cseindia.org/) पर अपशिष्ट प्रबंधन पर उपयोगी जानकारी उपलब्ध है।
  • यूट्यूब पर “अपशिष्ट प्रबंधन” खोजें: आपको इस विषय पर कई उपयोगी वीडियो मिलेंगे, जिनमें अपशिष्ट प्रबंधन के विभिन्न तरीकों और तकनीकों के बारे में जानकारी दी गई है।

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