जैविक खेती
जैविक खेती परिचय
यह एक टिकाऊ खेती का स्वरूप जैविक खेती कृषि की वह पद्धति है जिसमें पर्यावरण, जल एवं वायु को प्रदूषित किये बिना भूमि की सजीवता, जल की गुणवत्ता, जैव विविधता को बनाये रखते हुये दीर्घकालीन एवं टिकाऊ उत्पादन प्राप्त किया जाता है।
छत्तीसगढ़ प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिये जैविक खेती से संबंधित योजनाओं एवं कार्यकमों का क्रियान्वय वर्ष 2015-16 से निरंतर किया जा रहा है।
1. राज्य में प्रमाणित जैविक खेती को बढ़ावा देने प्रचार-प्रसार गतिविधियों एवं जागरुकता अभियान चलाना ।
2. राज्य के कृषकों को जैविक उत्पादन प्रणाली में क्षमता एवं जैविक उत्पादन हेतु प्रोत्साहन ।
3. कृषकों द्वारा उत्पादित जैविक खाद्यानों का प्रमाणीकरण, मूल्य संवर्धन एवं विपरण हेतु प्रयास करना ।
4. जैविक कृषि द्वारा लागत में कमी एवं टिकाऊ उत्पादकता प्राप्त करना ।
कार्यक्षेत्र
छ.ग. शासन द्वारा मुंगेली जिले के पथरिया विकासखंड को जैविक खेती के लिये चयनित किया गया है। योजना विकासखण्ड में चयन कर कलस्टर तैयार किया गया है तथा वित्तीय वर्ष 2023-24 कलस्टर में शामिल 450 कृषक योजना के हितग्राही है।
जैविक खेती योजना में कृषकों को दी जाने वाली सुविधाएं :-
(क) प्रशिक्षण :– जैविक खेती मिशन के तहत जैविक खेती करने हेतु चयनित कृषकों को जिला स्तर पर दो दिवसीय तथा राज्य स्तर पर तीन दिवसीय तकनीकी प्रशिक्षण प्रदाय किया जा रहा है।
(ब) राज्य के बाहर शैक्षणिक भ्रमण-जैविक खेती हेतु चयनित कृषकों का राज्य के बाहर 10 दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण कराया जा रहा है।
(स) जैविक कृषि मेला/सम्मेलन : प्रत्येक वर्ष राज्य स्तरीय जैविक कृषक सम्मेलन तथा जिला स्तर पर प्रत्येक जिले में कृषि मेला का आयोजन किया जाता रहा है।
(द) जैविक प्रमाणीकरण – कृषकों के जैविक उत्पाद का सामूहिक जैविक प्रमाणीकरण हेतु रु.3000/- प्रति हेक्टेयर का अनुदान सहायता उपलब्ध कराया जा रहा है।
(इ) जैविक खेती करने हेतु चयनित कृषकों के खेतों में एक एकड़ रकबा पर जैविक खेती तकनीक पर फसल प्रदर्शन का आयोजन क्रियान्वित है। फसल प्रदर्शन हेतु कृषकों को प्रति प्रदर्शन रु. 10000/- तक का कृषि आदान व अन्य आर्थिक सहायता उपलब्ध कराया जा रहा है।
(उ) जैविक कृषकों के खेतों पर जैविक खाद/जैविक कम्पोस्ट उत्पादन हेतु नाडेप टांका निर्माण तथा नाडेप कम्पोस्ट तैयार कराने हेतु प्रति टांका रु. 4000/- का आर्थिक सहायता तथा
वर्मी कम्पोस्ट टांका निर्माण व वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने हेतु प्रति टांका रु. 8000/- का आर्थिक सहायता का प्रावधान है। छ.ग. शासन कृषि विभाग द्वारा प्रदेश में लागू इस महती योजना का लाभ प्राप्त करने हेतु कृषकों से अपील की जाती है कि वे अपने क्षेत्र के कृषि अधिकारी, मैदानी कार्यकर्ताओं से संपर्क कर अधिक जानकारी प्राप्त करें।
जैविक खेती के मुख्य अवयव
आजकल सघन प्रणाली अपनाने तथा जैविक खाद क प्रयोग न करने के कारण मृदा उत्पादकता में निरंतर कमी होती जा रही है।समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कम करना तथा साथ-साथ पौधों को पोषक तत्वों की पूर्ति अन्य कार्बनिक स्त्रोतों द्वारा करना है।
समन्वित पौध पोषण प्रणाली का उद्देश्य-
- मृदा उर्वरता को बढ़ाना तथा उसे बनायें रखना।
- उर्वरकों की उपयोग दक्षता में वृद्धि करना।
- किसानों की आर्थिक एवं सामाजिक दशा में सुधार।
- फसलों की उत्पादकता बढ़ाना।
- पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना।
जैविक खाद-
गोबर की खाद
गोबर की खाद पशुओं के ठोस तथा द्रव मल मूत्र को किसी पोषक पदार्थों जैसे बिछावन, भूसा, पुआल, पेड़-पौधों की पत्तियों या लकड़ी का बुरादा आदि मिलाकर तैयार करते है। गोबर खाद ट्रेंच या खाई विधि से तैयार की जा सकती है। इस विधि से खाद बनाने के लिये ट्रेंच /
खाईयाँ तैयार की जाती है। ट्रेंचों की लम्बाई 6.5 मी. चौड़ाई 1-1.6 मी. और गहराई 1 मीटर रखी जाती है। ट्रेंच का आकार मवेशियों की संख्या पर निर्भर करता है।
नाडेप कम्पोस्ट
यह कम गोबर में अधिक जैविक खाद बनाने की एक उन्नत तकनीक है। इसके लिये जमीन की सतह पर एक आयताकार टांका बनाया जाता है तथा टांके के फर्श में इंटे बिछाकर पक्की की जाती है। टांके की दीवार 9 इंच चौड़ी होती है। टांके का आकार प्रायः 12 फूट लम्बा, 5 फूट चौड़ा तथा 3 फूट ऊँचा रखा जाता है । टांका को हवादार होना चाहिये। इसलिये टांके की दीवार बनाते समय ईंटों के 2 टद्दों की जुड़ाई के बाद 3 रद्दे की जुड़ाई करते समय दो ईंट के बाद 7 इंच का छेद छोड़कर जुड़ाई कर टांके की दीवारों एवं फर्श को गोबर एवं मिट्टी के घोल से लीप देते है।
हरी खाद
सनई, ढेंचा, ग्वार, सेंमी, बरबट्टी, लोबिया बरसीम आदि उत्तम फसलें है। जहाँ सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो तथा धान की रोपा पद्धति अपनाई जाती हो, वहां हरी खाद का उपयोग लाभकारी है। ढेंचा 30-35 कि. ग्राम प्रति हेक्टे. की दर से बुवाई करें। ढेंचा से 30-35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नत्रजन पौधों को उपलब्ध होता है।
केचुआं खाद (वर्मी कम्पोस्ट) का उपयोग
वर्तमान में केचुआ खाद का अधिक महत्व एवं प्रचलन है।
यह खाद वर्तमान खेती की वृद्धि में बहुत ही ज्यादा उपयुक्त एवं ग्रामीण स्तर पर सरलता से तैयार की जा सकती है।
वर्मी टांका निर्माण – कच्चा एवं पक्का बनाया जा सकता है। पक्का टांका का आकार प्रायः 10 फुट लंबा, 5 फुट चौड़ा एवं 2 फुट उंचा रखा जाता है। जिसके उपर छाया के लिये शेड लगाया जाता है।
जैव उर्वरक
नील हरित काई
यह एक प्राकृतिक जैव उर्वरक है जो वायु से नत्रजन स्थिरीकृत कर धान
की फसल को उपलब्ध कराता है। यह लगभग 25-30 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर उपलब्ध कराता है। नील हरित काई के सूखे पावडर को बियासी रोपाई के 7-10 दिनों के अंदर खेत में समान रूप से मिलाकर छिड़कना चाहिये। एक हेक्टेयर खेत के लिये 10 किलोग्राम पावडर पर्याप्त होता है।
राइजोबियम कल्चर
राइजोबियम जीवाणु जैव खाद का उपयोग मुख्य रूप से दलहनी फसलों जैसे – चना, मूंग, उड़द, सोयाबीन, अरहर, मूंगफली, मसूर आदि में किया जाता है। सामान्यता 5-15 मिली. प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। उपचारित बीजों को साफ बोरी या फर्श पर फैलाकर छायादार जगह में सुखाकर तुरंत बुवाई करना चाहिये।
एजोस्पाइरिलम
एजोस्पाइरिलम कल्चर के प्रयोग से 10 प्रतिशत तक फसल की उपज में वृद्धि प्राप्त की जा सकती है। धान की टोपाई में पहले एजोस्पाइरिलम एवं पी.एस.बी. के घोल से रोपा धान की जड़ को निवेशित करना मृदा निवेशन की अपेक्षा बहुत अधिक लाभप्रद है। जड़ निवेशक विधि में कल्चर की मात्रा कम लगती है। तथा उपज में वृद्धि अधिक होती है। बोता धान के बीज की बुवाई के समय ही बीजों को पी.एस.बी. एवं एजोस्पाइरिलम कल्चर से उपचार करना चाहिये।
एजोटोवेक्टर
यह वायुमण्डल की नत्रजन को स्थिर करके पौधों के लिये इस तत्व की उपलब्धता बढ़ाते है। इसके साथ-साथ यह बीजों के अंकुरण पर अच्छा प्रभाव डालते है। खरीफ मौसम में तिल, टमाटर, भिण्डी, तुरई, लौकी, कददू, बैंगन, मिर्च तथा अन्य वे फली सहित फसलों जिन्हे कम नमी वाली भूमि में उगाया जा सकता है। तथा रबी मौसम में गेंहू, सूरजमुखी, आलू, फूलगोभी, बैगन, मिर्च आदि से इसका उपयोग लाभप्रद होता है।
स्फूर घोलक जीवाणु (पी.एस.बी.)
पी.एस.बी. जैविक उर्वरक का उपयोग अघुलनशील स्फूर को घोलकर पौधों को उपलब्ध कराने के लिये किया जाता है। मृदाओं में पी.एस.बी. के प्रयोग से 3 से 10 प्रतिशत फसल की उपज में वृद्धि होती है। इसके उपयोग से लगभग 25 प्रतिशत सिंगल सुपर फास्फेट की बचत होती है। इसका उपयोग बीज उपचार, पौध जड़ उपचार एवं मुद्रा उपचार तीनों विधि से किया जा सकता है।
कचरा अपघटक (WASTE DECOMPOSER)
यह गाय के गोबर से कुछ लाभकारी सूक्ष्मजीवों से निर्मित किया गया है। कचा अपघटक जैव उर्वरक, बायो-कंट्रोल और साथ ही मिट्टी स्वस्थ्य पुनरुदधाटक के रूप में काम करता है व अन्य प्रकार से भी जैसे सभी प्रकार के कृषि और बागवानी फसलों में रोगों से लड़ने के लिए जैव कचरे की शीघ्र कम्पोस्टिंग, ड्रीप सिंचाई, पत्तों पर छिड़काव के लिए व जैविक कीटनाशक के रूप में तथा फसल के अवशेषों की कम्पोस्टिंग के साथ-साथ बीज उपचार के लिये भी प्रयोग किया जा सकता है।
कचरा अपघटक किसानों को छोटी सी बोतलों में दिया जाता है। और वे खुद किसी भी अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग किये बिना इससे और अधिक कचरा अपघटक तैयार कर सकता है।
कचरा अपघटक के उपयोग हेतु दो किलोग्राम गुड को 200 ली. पानी में घोलकर कचरा डीकम्पोजर की एक बोतल में उपस्थित सामग्री को इसमें ठीक तरह से मिला दिया जाता है, पांच दिवस के बाद यह अपशिष्ट अपघटक हेतु तैयार हो जाता है।
रोग प्रबंधन हेतु सूक्ष्म जीवों का उपयोगः
ट्रायकोडर्मा
भूमि जनित रोगों से बचने के लिये ट्रायकोडर्मा एक महत्वपूर्ण जैव फफुन्दनाशी की प्रजाति है जो अपनी फफूंद रोधी क्रिया द्वारा विभिन्न प्रकार के रोगों से जैसे जड़ गलन, उकठा रोग, पदगलन, तना गलन जैसी बिमारियों से हमारी फसलों को बचाती है। इसका उपयोग भूमि उपचार, थरहा उपचार व छिड़काव के रूप में रोग नियंत्रण हेतु किया जाता है।
स्यूडोमोनास फ्लोरेसेन्स
यह जीवाणु एक महत्वपूर्ण जैव रोग नाशी है जो नियंत्रण के साथ-साथ पौधों की बड़वार में सहायता करता है और पौधों की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसका उपयोग भूमि उपचार, थरहा उपचार व छिड़काव के रूप में किया जाता है। फसलों को निम्नलिखित रोगों से बचाव हेतु इसका उपयोग किया जा सकता है।
धान-झुलसा रोग (ब्लास्ट), भूटा धब्बा रोग, अंगमाटी रोग (शीथ ब्लास्ट), जीवाणुजनित झुलसन रोग।
दलहनी व तिलहनी फसलें- उकठा रोग, पर्ण दाग ।
सब्जियां -उकठा रोग, पर्ण दाग, फलदार पौधे उकठा टोग, पर्ण दाग ।
जैविक खेती हेतु जैविक कीट नियंत्रण
जैविक काटकों द्वारा नाशी कीटों को नियंत्रण करने की प्रक्रिया को जैविक कीट नियंत्रण कहते है। इनमें मित्र कीट, कीट रोगकारी सूक्ष्म जीव तथा कीट परपोषी सूत्र कृमि प्रमुख है। मित्र कीटों में परभक्षी, परजीवी तथा परजीविभ्यास शामिल है। उदाहरण- परभक्षी कीट आकार में अपने परपोषी से बड़ा होता है। परभक्षी कीटों में लेडी बर्ड बीटल, काक्सीनेला, प्रजाति, प्रेयिंग मेटिस, रेडयूविड, मत्कुण तथा केन्थोकोनिड प्रजाति प्रमुख है।
ये अपने जीवन काल में कई परपोषी कीटों को अपना शिकार बनाते है। परजीवी में कई प्रकार के मत्कुण तथा शिकारी मक्खियाँ इत्यादि आते है, ये परपोषी कीट को मारते नहीं सिर्फ उसे कमजोर करते है। जैविक कीट नियंत्रण पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से सतत् एवं सुचारु कीट नियंत्रण प्रयास है। जैविक कीट नियंत्रण प्रयोगशाला में राईस विविल माथ, चाँवल की मुंडी पोषक के रूप में इन पांच बयोएजेंट को दिया जा रहा है।
उद्देश्य
इस प्रकार एक कीट से दूसरे कीट को रासायनिक दवाई छिडके बिना मारने की प्रक्रिया को जैविक कीट नियंत्रण के तहत लिया जा रहा है। इस प्रयोगशाला का मुख्य उद्देश्य किसानों को इन मित्र कीटों से अवगत कराना एवं इनके लाभ बताना है तथा प्रशिक्षण एवं भ्रमण के माध्यम से इन्हें जानकारी प्रदान की जाती है। साथ ही साथ छत्तीसगढ़ में पाये जाने वाले बायोएजेंट्स (लोकल स्पीसीज) को बढ़ावा देता है।
जिलें में जैविक खेती एक नजर में
राज्य में जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु राज्य पोषित जैविक खेती मिशन योजना का जिलें में शुभारंभ वर्ष 2015-16 में किया गया।
योजनान्तर्गत प्रथम चरण में जिलें के विकासखण्ड मुंगेली में 70 एकड़, पथरिया में 35 एकड़ एवं लोरमी में 35 एकड़ में जैविक धान फसल का उत्पादन किया गया है।
द्वितीय चरण में वर्ष 2018-19 से विकासखण्ड पथरिया के चयनित ग्राम-भिलाई, अमलीकापा, परसाकापा एवं तरकीडीह में सुगन्धित धान किस्म विष्णु भोग का उत्पादन किया गया। तृतीय चरण में वर्ष 2021-22 से विकासखण्ड- पथरिया के चयनित ग्राम करही, सांवतपुर, सल्फा, चुननचुनिया, खजी में 450 एकड़ में सुगंधित धान का उत्पादन किया जा रहा है।
जैविक खेती कृषि की वह पद्धति है जिसके उपयोग से पर्यावरण, जल एवं वायु को प्रदूषित किये बिना भूमि की सजीवता, जल की गुणवत्ता, जैव विविधता को बनाये रखते हुये दीर्घकालीन एवं टिकाऊ उत्पादन प्राप्त किया जाता है।