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गेंदे की खेती से लाखों कमाया जा सकता है।रबी सीजन में खेती की सम्पूर्ण Information @ Rabi 2024

 

Index of Contents

Marigold Farming: A2Z Cultivation Guidelines|General Information

Scientific name of marigold

African Marigold (Tagetus erecta)

French Marigold (Tagetes patula)

Family- Compositae

Important And Scope:- इस लेख में हम अपको Marigold Farming: Best Cultivation Guidelines A2Z|General Information  के बारे में बताने की कोशिश किये है। जो आपका खेती की जानकारी बढ़ाने में मदद कर सकता है, और आपकी खेती से income बढ़ाने मे मदद कर सकता है। गेंदा फुल का आज हमारे जीवन में बहुत बड़ा उपयोगिता  है। इस फूल का उपयोग हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मुख्य रूप से उपयोग होता है और होता आ रहा है।

इसका प्रमुख कारण इसके फूल का अलग-अलग  खूबसूरत रंग , मनमोहक सुगंध , आसानी से उपलब्धता , कम कीमत , उगाने में आसानी आदि प्रमुख कारण है । इसलिए इसका फूल का उपयोग हर वर्ग के लोग आसानी से पर्याप्त मात्रा में करते हैं। इसका फूल का प्रमुख उपयोग माला बनाने में, घर के आँगन में पौधा लगाना , पूजा करने में ,अतिथि सत्कार के लिए जमीन में बिछाने में  , शादी विवाह तथा अन्य कार्यक्रमों में home decoration करने इत्यादि कार्यों में किया जाता है।

  • गेंदा के फूल छत्तीसगढ में मुख्यतः माला बनाने, धार्मिक स्थलों पूजा, विवाह आदि में काम में आते हैं।
  • इसे गमलों व क्योरियों में भी सजावट हेतु उगाया जाता है।
  • यह अपनी खूबसूरती एवं टिकाऊपन के कारण घरेलु पुष्प व्यापार में गुलाब के बाद सर्वाधिक बिकने वाला पुष्प है।
  • इसकी व्यवसायिक खेती साल भर की जा सकती है।
  • छत्तीसगढ के विभिन्न भागों में गेंदे की खेती विभिन्न भौगोलिक जलवायु में तीन फसलों के रुप में खेती की जाती है।
  • गेंदा की सब्जियों खासतौर पर टमाटर, बैगन, मिर्च आदि के साथ मिश्रित तौर उगाकर काफी हद तक सूत्रकृमि के नियंत्रण में सफलता मिली है।
  • गेंदे के फूलों का प्रयोग मुर्गियों के अंडों के जर्दी का रंग अधिक गहरा करने में भी हो रहा है। Marigold Farming अन्य फसल से ज्यादा लाभ प्राप्त किया जा सकता है। हमारा यह लेख Marigold Farming आपके लिए महत्व पूर्ण हो सकता है।

उन्नत किस्में (Improved variety of marigold)

गेंदा मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं पहला-अफ्रीकन मेरी गोल्ड (African marigold) जिस का साइज बड़ा होता है कलर पीला सफेद नारंगी होते हैं और दूसरा-फ्रेंच मेरीगोल्ड (French Marigold) इसका कलर मुख्य रूप से मेहरून कलर का होता है । जिसका उदाहरण फोटो के साथ नीचे बताने का कोशिश किया गया है ।

अफ्रिकन गेंदाः इनके पौधे अधिक ऊचें (औसतन 75सें.मी.) एवं विभिन्न रंग जैसे नारंगी, पीले आदि पाये जाते हैं।

फ्रेंच गेंदाः यह पौधे अधिकतर बौने कद ( 30-100सें.मी. ) के होते हैंै। इनके पुष्प भी आकार में छोटे होते हेै। यह पुष्प सुनहरी लाल, नारंगी, पीले एवं मिले जुले रंग के होते हैं।

A. African Marigold 

marigold flower
African marigold

इन किस्मों की पौधों की ऊंचाई  60 से 80 सेंटीमीटर तक पाई जाती है । इसके पुष्प का आकार बड़े गूथे हुए एवं विभिन्न रंगों जैसे पीले, सफेद,  नारंगी एवं पीले और नारंगी रंगों का मिश्रण भी पाया जाता है।

Commercial Marigold cultivation में इसका ज्यादा cultivation किया जाता है।

प्रमुख प्रजातियां (Varieties of African marigold):- 

क्रॉउन आफ गोल्ड, ये लो सुप्रीम, जॉइंट डबल अफ्रीकन, नारंगी जॉइंट डबल अफ्रीकन, नारंगी जॉइंट डबल पीला, क्रैकरजैक, गोल्डन एज, कलकतिया इत्यादि।

इसके अलावा अमेजॉन में भी बहुत सारे वैरायटी उपलब्ध है जैसे क्राफ्ट कंपनी का, लेकिन इसमें माला के लिए उपयोग होने वाले गेंदे में लड्डू गेंदा ज्यादा फेमस है क्योंकि इसका साइज और सेप बहुत ही परफेक्ट होता है और एकदम घने होते हैं ना ज्यादा बड़ा होता है और ना ही ज्यादा छोटा होता है ।

जिस कारण इसका उपयोग माला बनाने में किया जाता है।  और इसका वजन भी बहुत अच्छा होता है। लेकिन लड्डू गेंदे की एक कमी भी है यह वजनदायर होने के कारण थोड़ा भी हवा पानी गिरने पर गिर जाता है अपने आप को संभाल नहीं पाता है और इसमें कंसा अच्छा होता है लेकिन ज्यादा हाइट नहीं बढ़ पाता है।

जबकि सामान्य गेंदे  का पौधा पानी और हवा से नहीं गिरता है, उस का पौधा मजबूत रहता है लेकिन माला बनाने में कम उपयोग होता है क्योंकि इसका साइज और सेप  बड़ा होता है जिसके कारण माला में ज्यादा मात्रा में फूल गुथना  पड़ता है , जो कि मंहगा  पड़ता है।  लेकिन पूजा-पाठ,  घर के डेकोरेशन इत्यादि कार्यों में यह लड्डू गेंदे  के जगह ज्यादा अच्छा है और बजट में होता है।

B. French Marigold 

French marigold
French marigold

इस गेंदे में अधिकांशत फूल मेहरून रंग  तथा छोटे फूल वाले होते हैं । इन किस्मों के पौधों की ऊंचाई 30-100  सेंटीमीटर तक पाई जाती है। इसका मुख्य रूप से किस्में

(Varieties of French Marigold) में है:- रस्टी  रेड, बटर स्कॉच, बटरबॉल, फायर ग्लो, रेड ब्रोकार्ड, सुसाना फ्लेमिंग फायर डबल, स्टार ऑफ इंडिया इत्यादि। इसके अतिरिक्त पूसा नारंगी गेंदा, पूसा बसंती गेंदा नाम की दो नई जातियां भी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा निकाली गई है।

इस गेंदे में टिलर्स (कंसा) बहुत अच्छा आता है और अगर इसको ठीक से देखरेख करें तो इसमें बहुत ज्यादा फूल आता है और काफी समय तक फूल देते रहता है।

इसका पौधा भी बहुत कमजोर होता है।  थोड़ा सा भी हवा पानी पड़ने पर या भारी दबाव पड़ने पर टूट जाता है। हमारे छत्तीसगढ़ में ऐसे बरसात के दिनों में मुख्य रूप से लगाया जाता है।  इसे हमारे छत्तीसगढ़ी में चंदैनीन  गोंदा कहते हैं और इसका बहुत ही अच्छा स्थान है। इस गेंदे का एक और खासियत है , अफ्रीकन गेंदा जैसे इसमें नर फूल का समस्या नहीं होता है जबकि अफ्रीकन गेंदों में नर फूल की समस्या एक बहुत बड़ी समस्या है। नर फूल वाला गेंदे का मार्केट में कोई मूल्य नहीं रहता। इसमें सिर्फ दो चार पंखुड़ियां रहती है और बीच में नर फुल रहता है।

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खेती की सम्पूर्ण जानकारियाँ 

जलवायु (Climate for Marigold)

Marigold cultivation विभिन्न प्रकार की जलवायु में आसानी से की जा सकती है । यह तीनों मौसम बरसात, सर्दी एवं ग्रीष्म ऋतु में इसकी खेती करते हैं । परंतु गेंदे की समुचित वृद्धि एवं अधिक एवं खूबसूरत फूल के लिए 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान का आवश्यकता होता है । अधिक तापक्रम पर पौधों की वृद्धि कम हो जाती है।  जिसके कारण पुष्प की गुणवत्ता तथा उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है ।

इसी तरह ठंड एवं पाले से भी पौधे व फूल मरते हैं । जब पौधे पुष्पन अवस्था पर आ जाए और उस समय अगर पानी , बरसात , बदली का मौसम बने तो कीड़े- बीमारी लगने का संभावनाएं बढ़ जाता है । अधिक तापमान से कितना भी अच्छे हाइब्रिड बीज हो उसका ग्रोथ नहीं होता है और उत्पादन कम आता है।

गेंदा की अच्छी बढ़ावर व अधिक फूल प्राप्त करने के लिए नम जलवायु की आवष्यकता होती है। अच्छी वृद्धि हेतु प्र्याप्त धूप रहना चाहिए। वर्ष में इसकी तीन फसलें षरदकालीन, ग्रीष्मकालीन एवं वर्षाकालीन है जिसमें षरदकालीन फसल सबसे उत्तम है। यह इसलिए है क्यांेकि अधिक तापमान पर पौधे की वृद्धि कम हो जाती है, जिसके कारण पुष्प की गुणवत्ता तथा उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

मिट्टी (Soil required for Marigold Cultivation)

फूलों की अच्छी पैदावार के लिए अच्छे जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 7 से 7.5 के मध्य हो अच्छी रहती है । पौधों के अच्छी  वृद्धि एवं  विकास के लिए पर्याप्त सूर्य की रोशनी की उपलब्धता अति आवश्यक है।  इसलिए छाया वाले स्थानों  में इसकी खेती करना उचित नहीं होता और अधिक क्षारीय एवं अधिक अम्लीय मृदा  इसके  खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है । पौधों के रोपाई के पहले खेत की जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए।

इसके लिए रोटावेटर चलाना बहुत ही अच्छा होता है । ऐसी मिट्टी जिसमें पानी पलाने  के बाद सूखने पर सफेद-सफेद नमक जैसा पदार्थ जम जाता है वह मिट्टी इसकी खेती के लिए उचित नहीं होता । क्योंकि उसमें लवण का मात्रा अधिक होने से  गेंदे का बढवार अच्छा नहीं होता । अगर गर्मी के दिनों में गेंदे की खेती करना है तो ऐसे मिट्टी का चयन करना चाहिए जिसका वॉटर होल्डिंग कैपेसिटी मतलब जल धारण क्षमता अच्छा हो।

जैसे कन्हार मिट्टी,  इसी को काली मिट्टी भी कहते हैं । इसका जल धारण क्षमता इसलिए ज्यादा होता है क्योंकि इसमें क्ले  पार्टिकल ज्यादा होतें  है । जो नमी  को पकड़ कर बनाए रखता है । इसके लिए भाठा  मिट्टी उचित नहीं रहता और मुख्य रूप से गर्मी के दिनों में खेती के लिए तो बिल्कुल भी अच्छा नहीं होता , बरसात के दिनों में भाटा मिट्टी पर इसकी खेती की जा सकती  है लेकिन उसमें लगाते समय जैविक खाद जैसे गोबर खाद केंचुआ खाद इत्यादि डालना अति आवश्यक होता है जो कि नमी  को बांध के रखे ।

अंतिम जुताई के समय 25-30 टन सड़ी गोबर की खाद मिलाकर सिंचाई की सुविधानुसार क्यारिया बनाना चाहिये।

पौध प्रवर्धन ( Plant Propagation of Marigold)

Marigold cultivation में पौध प्रवर्धन बीज एवं तने के कटिंग दोनों से किया जाता है। व्यावसायिक Marigold cultivation के लिए बीज से पौधे तैयार करना ज्यादा अच्छा होता है। लेकिन गमलों में लगाने के लिए अच्छी किस्म का गेंदे का पौधा मिले तो उसी का कलम लगा कर पौधा तैयार किया जा सकता है । कलम से तैयार पौधा , ऊंचाई में ज्यादा नहीं बढ़ता है और इसकी life भी बीज वाले पौधों से थोड़ा काम होता है।

कलम के लिए नवीन टहनी का चयन करना चाहिए, चयनित कलम की मोटाई पेंसिल इतना या थोड़ा काम होना चाहिए। कलम की लंबाई लगभग 7-10 cm रखना चाहिए। लगाने से पहले बड़ी एवं निचली पत्तीयों को 1 कम छोड़कर काट देना चाहिए। Top Leaves को कुछ नहीं करना चाहिए। कलम लगाने की गहराई लगभग 1.5-2 inch रखना चाहिए। और इसे शाम के समय लगाना ज्यादा उचित होता है। लगाए गए स्थान में 3 दिनों तक अच्छी नमी बनाए रखना है। लगभग 4-5 दिनों में पौधे लग जाता है।

बुवाई एवं रोपाई का समय 

फसल का प्रकार

नर्सरी में बुवाई का समय

पौध रोपण का समय

षरदकालीनसितम्बर – अक्टूबरअक्टूबर – नवम्बर
ग्रीष्मकालीनजनवरी – फरवरीफरवरी – मार्च
वर्षाकालीनमई – जूनजून – जुलाई 
   
   

 

फसल का प्रकार नर्सरी में बुवाई का समय षरदकालीन सितम्बर – अक्टूबर अक्टूबर – नवम्बर ग्रीष्मकालीन जनवरी – फरवरी फरवरी – मार्च वर्षाकालीन मई – जून जून – जुलाई

गेंदे का नर्सरी /पौधा तैयार करना (Nursery Preparation for Marigold Cultivation)

1 हेक्टेयर क्षेत्रफल (2.5 एकड़) में गेंदे  की फसल (Marigold cultivation ) के लिए डेढ़ किलोग्राम 1 1/2 kg बीज पर्याप्त होता है मतलब प्रति एकड़ लगभग 500 से 600 ग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है । इसकी बुवाई फूलों की उपलब्धता के अनुसार निम्न प्रकार की जा सकती है । बीज बोने से पहले जमीन को 2% फॉर्मलीन से उपचारित कर लेना चाहिए इससे पौध गलन रोग (damping off disease) नहीं होता मतलब नर्सरी में पौधे नहीं मरेंगे ।

उपचार के बाद जमीन को 2 दिन तक पॉलिथीन या  प्लास्टिक के बोरे से ढक कर रखना चाहिए जिससे फॉर्मलीन का असर रोगाणुओं के ऊपर अच्छी तरह से हो जाए और कीटाणु खत्म हो जाए । इसके बाद जमीन को सुखाकर क्यारियाँ  3 मीटर लंबा एवं 1 मीटर चौड़ा बनाते हैं । क्यारी की चौड़ाई 1 मीटर ही रखना होता है और लंबाई हम आवश्यकतानुसार बढ़ा सकते हैं । दो क्यारियों के बीच 30 सेंटीमीटर का अंतर रखें ताकि पानी एवं निराई गुड़ाई का कार्य आसानी से किया जा सके ।

नर्सरी की क्यारियों में अच्छी कूड़ाई  कर 10 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद अच्छी तरह मिलाएं फिर क्यारियों के ऊपर 5 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइन बनाकर बीजों को 3 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर बोए एवं ऊपर से हल्की भुरभुरी गोबर खाद से छिड़क देवें एवं तुरंत सिंचाई कर के सूखे घास  से ढक देते हैं ताकि बीजों का अंकुरण अधिक एवं एक समान हो । बरसात के दिनों में नर्सरी को जमीन से 4 इंच ऊपर बनाना चाहिए ताकि जलभराव ना हो । वैसे ही बरसात के दिनों में नर्सरी को जमीन की सतह से लगभग 4 इंच नीचे बनाना चाहिए ताकि नमी बना रहे।

ज्यादा पानी डालने की आवश्यकता ना पड़े । और अगर पानी की उपलब्धता पर्याप्त है तो गर्मी के दिनों में सीधा जमीन पर भी नर्सरी डाला जा सकता है । नर्सरी अवस्था में ही पोटाश और डीएपी का हल्का मात्रा डालना चाहिए जिससे पौधे का जड़ मजबूत होता है और पौधे भी रोग प्रतिरोधक और स्वस्थ रहते हैं । फफूंद नाशक जैसे मैनकोज़ेब एवं कीटनाशक जैसे क्लोरो पायरीफास किटनाशक  का 1 -1 छिड़काव अवश्य करना चाहिए जिससे थोड़ा बहुत कीड़ा एवं बीमारी लगा हो वह खत्म हो जाते हैं और पौधे स्वस्थ हो जाते हैं। लगभग 15 से 20 दिनों में हमारे पौधे रोपण  के लिए तैयार हो जाते हैं ।

गेंदे की खेती

प्रोट्रे में गेंदे की  नर्सरी लगाना ( Marigold Nursery on Protray With Cocopeat) 

प्रोट्रे 96 खानों की प्लास्टिक ट्रे होती है। 

इनमे मीडिया के रूप में कोको पीट भर कर हर एक खन में बीज की बुवाई की जाती है

लगभग 1 प्रोट्रे में 1.2 कि॰ग्र॰ कोको पीट लगता है। 

ये अपने वज़न से 6 गुना पानी स्टोर कर सकता है। 

कोकोपीट वर्मिकोंपोस्ट को  गोबर की खाद ;1:1 में मिला कर प्रोट्रे मे भरे,

अगर सिर्फ कोकोपीट का प्रयोग हो तो 12वें एवं 20वें दिन 19:19:19 खाद का 3ग्रा प्रति 1 लीटर की दर से छिड़काव करें। 

इसमें मिट्टी रेत एवं खाद के मिश्रण 2:1:1  के अनुपात में भी प्रयोग कर सकते हैं।

इन्हे छायादार स्थान पर रखें। 

pro tray and cocopeat
pro tray and cocopeat

खाद एवं उर्वरक (Fertilizer for Marigold)

अधिक उत्पादन एवं विधि के लिए नाइट्रोजन फास्फोरस एवं पोटाश की मात्रा 90 :90:75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें । भूमि के अंतिम जुताई के समय गोबर की सड़ी हुई खाद एवं फास्फोरस एवं पोटाश की संपूर्ण मात्रा को बेसल डोज  के रूप में मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए इससे फायदा यह होता है कि ,  पौधे को जड़ के विकास के लिए फास्फोरस का पर्याप्त मात्रा शुरू से ही मिलते रहता है और पोटाश की भी पर्याप्त मात्रा मिलते रहने से रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छा हो जाता है।

एवं प्रकाश संश्लेषण का दर भी बढ़ जाता है और पौधे स्वस्थ होते हैं । फास्फोरस और पोटाश की मात्रा पूर्ण रूप से शुरू में ही मिला देने को इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि यह जहां पर डाले रहेंगे वहीं पर ही रहते हैं, इसका नुकसान नहीं होता और पौधे अपने आवश्यकतानुसार उसको लेते रहते हैं । और इसकी मात्रा शुरू में नहीं डालने से पौधों  को इसकी पूरी मात्रा ना मिल पाने के  कारण पौधे कमजोर हो जाते हैं और उत्पादन में भी कमी आती है। इसके विपरीत यूरिया की जो मात्रा है उसको तीन से चार बार में पौधों को देना चाहिए।

पौधे के बढ़वार के अलग अलग अवस्था में कितना कितना संतुलित उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए इसका chart नीचे दिया गया है। 

fertilizer dose of marigold
fertilizer dose of marigold

क्योंकि यह बहुत ही वोलेटाइल मतलब उड़कर एवं  पानी में घुलकर जमीन के नीचे जाकर व्यर्थ हो जाता है और पौधों को इसकी पूरी मात्रा नहीं मिल पाता है।  जिससे हमें यूरिया के रूप में पैसे का नुकसान होता है और हमारे पौधे को भी नहीं मिल पाता,  लेकिन तीन से चार बार में थोड़ी-थोड़ी मात्रा डालते रहने से पौधों को अधिकतम रूप में Nitrogen  यूरिया से प्राप्त होते रहते हैं जिससे पौधों का वृद्धि एवं विकास अच्छा होता है । एक साथ अधिक मात्रा में यूरिया डाल देने से पौधों में वानस्पतिक वृद्धि  अधिक हो जाता है।

जिससे पौधे की ऊंचाई आवश्यकता से अधिक हो जाता है और उसके तने भी कमजोर हो जाते हैं।  इस कारण थोड़ा भी हवा पानी आने से पौधे गिर जाता है । किट एवं  बीमारी भी अधिक मात्रा में लगते हैं । नाइट्रोजन का पहला मात्रा रोपाई के 20 से 30 दिन बाद तथा शेष बचे मात्रा को 15- 1 5 दिन के अंतराल में पौधों के आसपास कतारों के बीच में डालते रहना चाहिए । फूलों की रंग सघनता उचित मात्रा में खाद के प्रयोग से निर्धारित होते हैं ।

जब फूल आने लगे उस समय में हुमिक एसिड का स्प्रे करना बहुत अच्छा होता है । 20 से 25 ग्राम हुमिक एसिड प्रति इस प्रेयर के दर से छिड़काव करना चाहिए इससे अधिक मात्रा में फूल आता है और फूल का बढवार भी बहुत ज्यादा हो जाता है। हुमिक एसिड छिड़काव से फूल तोड़ने के लायक जल्दी हो जाते हैं । अगर पौधे कमजोर नजर आए तो पोटाश 100 ग्राम+ 50 ग्राम मैग्निशियम प्रति स्प्रेयर (16 लीटर) छिड़काव करने से पौधे हरे भरे हो जाते हैं । 2% यूरिया मतलब 320 ग्राम/16 लीटर पानी/प्रति स्प्रेयर छिड़काव करने से भी पौधों का ग्रोथ अच्छा होता है और पुष्पन भी बढ़ता है ।

पौधरोपण , समय एवं दूरी (Planting of marigold)

नर्सरी में बीज बोने के 15 से 20 दिनों के बाद जब तीन चार पंक्तियां अवस्था आ जाए तब पौधे रोपने के लिए तैयार हो जाते हैं । खेतों में कतार से कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर देशी -90 cm हाइब्रिड  एवं पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर (अफ्रीकन गेंदे) एवं जबकि फ्रेंच गेंदे में पौधे तथा कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर रखी जाती है । रोपण  का कार्य सायंकाल के समय करना चाहिए जिससे पौधे रात भर में अपना जड़  पकड़ लेते हैं , जबकि सुबह लगाने से पौधे दिन भर के धूप में मुरझाने के संभावना ज्यादा होता है ।

एक कतार में एक पौधा और 2 पौधा लगाया जाता है। इन्ही का फोटो नीचे दिया गया है (with planting distance)-

गेंदे की खेती

 

गेंदे की खेतीनर्सरी के पौधे उखाड़ने से पहले हल्की सिंचाई करनी  चाहिए ताकि उखाड़ते समय पौधों की जड़ों को छक्षति न  पहुंचे । रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करना आवश्यक होता है । पौधे उखाड़ते समय कोशिश करें कि जितना ज्यादा हो सके मिट्टी उसके जड़ में लगा रहे, लगे हुए  मिट्टी को झड़ाएं  नहीं, इससे पौधे का ग्रोथ पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता ।

अगर किसी नर्सरी से पौधे  ही खरीद के ला रहे हैं तो एक पौधा एक जगह पर लगाना चाहिए और अगर बीज मंगा कर घर में ही नर्सरी तैयार कर रहे हैं तो रोपड़ के समय कोशिश करें कि दो पौधा लगाएं क्योंकि कुछ पौधे मर जाते हैं और कुछ नर फूल निकल जाता है।

और उसे बाद में निकालना पड़ता है । एक ही पौधा लगाए रहने से बाद में उसके मर जाने या नर फूल निकल जाने से उसको निकाल देने से वहां पर खाली जगह बन जाता है।

Marigold cultivation / Gende ki Kheti

Marigold cultivation / Gende ki Kheti

Marigold in drip Irrigation

Marigold in drip
Marigold in drip

Rooted Cutting से भी पौधे तैयार कर सकते हैं

गेंदे की खेती

                                                                             Rooted cuttings of marigold

गेंदे में सिंचाई (Irrigation required for Marigold farming)

Marigold cultivation में अपेक्षाकृत पानी की कम आवश्यकता होती है । सामान्यत: बरसात के दिनों में पानी पलाने की आवश्यकता नहीं होता । ठंड के दिनों में 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए एवं गर्मी के दिनों में 5 से 7 दिनों में पानी पलाने की आवश्यकता होती  है । सिंचाई कितने दिन के अंतराल पर करना है और कितना करना है यह डिपेंड करता है आपका मिट्टी किस प्रकार है ।

अगर कन्हार मिट्टी है तो उसमें पानी कम डालना पड़ता है क्योंकि उसमें जल धारण क्षमता अच्छा होता है इसके विपरीत अगर भाठा  मिट्टी ( मुरुम मिट्टी) है तो इसमें पानी ठहरता नहीं है।

इसलिए इसमें पानी जल्दी-जल्दी डालना पड़ता है क्योंकि इसका जल धारण क्षमता बहुत कम होता है और तुरंत सूख जाता है । अगर खेत में नमी दिख रहा है तो पानी  डालने की आवश्यकता नहीं होता और जब खेत की ऊपरी मिट्टी मैं दरार दिखने लगे तो समझ लीजिए कि पानी की कमी हो गई है और पानी डालना चाहिए ।

एक चीज और देखने में आया है की जब हम फ्लड विधि से अच्छे से पानी डालते  हैं और पुरी  मिट्टी जहां पौधा है और जहां पर नहीं है, गीला होता है तब जो वहां पर अनुकूलित वातावरण बनता है उसमें पौधे का विकास बहुत ही अच्छी और तेज गति से होती  है ।सिर्फ जहां पौधे लगे हैं वही बस हल्का पानी डाल देने से पौधे का बढवार इतना अच्छा नहीं होता ।

निंदाई – गुड़ाई (Cultural Practices and Weed Control in Marigold Cultivation)

गेंदे की खेती (Marigold cultivation ) में निदाई  कुड़ाई का बहुत ही अहम रोल है । मुख्य रूप से पौधों को नर्सरी में या खेत में लगाने के बाद प्रारंभिक अवस्था में निराई गुड़ाई का विशेष महत्व है । पौधों को लगाने के बाद कम से कम दो निराई गुड़ाई की आवश्यकता होती है। प्रथम गुड़ाई पौधों के रोपण के 20 से 25 दिन बाद तथा दूसरी गुड़ाई 40 से 45 दिन बाद करना चाहिए । समय-समय पर जब भी अवश्यकता  हो  खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए ।

मेरा खुद का अनुभव है कि जब हम पौधों को कुड़ाई करते हैं तो खरपतवार तो मरता ही है लेकिन 1 हफ्ते के अंदर में पौधों में एक अलग सा वृद्धि देखने को मिलता है ।

शुरुआत में अगर कुड़ाई नहीं किया जाए तो पौधों का ग्रोथ बहुत ही कम हो जाता है और उसमें  कंसा  अच्छे से नहीं आते हैं । जब भी कुड़ाई करें तो ध्यान रखें सिर्फ पौधे के जड़ों के चारों ओर को ही ना कुड़ाई करें जबकि पूरी क्यारी को कुड़ाई करें इससे पौधे का वातावरण बहुत ही अनुकूलित हो जाता है । जल धारण क्षमता भी मिट्टी का सुधरता है और पोषक तत्व की प्राप्ति पौधों को बढ़ जाता है जिससे पौधों का ग्रोथ और भी तेजी से होता है ।

रोपाई के 20 से 25 दिन बाद निराई गुड़ाई करके अगर क्यारी में मिट्टी चढ़ा दिया जाए तो इसका ग्रोथ और भी अच्छा हो जाता है क्योंकि पौधों को अलग से सहारा मिलता है ।

गेंदे की खेती

गेंदे में पिनचिंग (Pinching)

पिनचिंग मतलब पौधे का मुख्य शाखा को जो ऊपर की ओर बढ़ रहा होता है उसके ऊपर के 2 इंच को काट देना । इससे होता यह है की पौधे ऊंचाई में ना पढ़कर साइड से शाखाएं निकालना चालू करता है और पौधे छोटा, झाड़ी नुमा तथा अधिक शाखाओं वाला बन जाता है । जिस से अधिक मात्रा में फूल प्राप्त होते हैं ।

पौधों को रोपने के बाद जब फूल की पहली कली दिखाई दे तो उस समय शाखाओं के ऊपरी भाग को तोड़ देते हैं या नई Blade से काट देते हैं जिससे पौधे पर नई शाखाएं निकल आती है । पिनचिंग का कार्य नाखूनों से ना करके नए ब्लेड से करना चाहिए इससे इंफेक्शन का खतरा कम हो जाता है।

Marigold cultivation में pinching का बहुत अच्छा योगदान है।

अन्य कार्य (Other Works)

  1. पौधों को सही समय पर खेत में लगाएं अन्यथा अधिक मुझे पौधे लगाने के पश्चात जमीन पर लेट जाते हैं । जितना छोटे पौधे लगाएंगे पौधे इतना मजबूत बनेंगे ।
  2. पौधरोपण के 30 दिन बाद यदि 1000 पीपीएम एस्कोरबिक एसिड का छिड़काव किया जाए तो खोज में वृद्धि होती है ।
  3. पौधरोपण के 40 दिन बाद पिनचिंग करने से पौधों में शाखाएं जल्दी बातें बनती है जिसके परिणाम स्वरूप भी अधिक प्राप्त होते हैं ।
  4. जब भी नर फुल दिखे तो उससे उखाड़ कर फेंक देना चाहिए क्योंकि यह स्वस्थ पौधों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं और उनके विकास को कम कर देते हैं ।

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फूलों की तोड़ाई एवं पैकिंग (Harvesting and Packaging of Marigold)

सामान्यता 2 से 3 महीने बाद फूल खिलना प्रारंभ हो जाता है और परिपक्व फूलों  को जल्दी सुबह या शासनकाल ठंडे समय में तोड़कर गनी बैग या बांस की टोकरी में पैकिंग कर के स्थानीय एवं दूरस्थ बाजार को  भेजना चाहिए । पैकिंग के बाद बैग या टोकनी को ऊपर से पानी से गीला  प्रतिदिन करें,  एवं पौधों में लगे  सूखे पुष्पों को तोड़कर अलग कर दें ताकि नया  फूल खिलते रहे ।

गेंदे की फूल की तोड़ाई  हर 1 दिन के अंतराल में कर सकते हैं क्योंकि इसका फूलों का बढ़वार बहुत तेज होता है । प्रत्येक बार  तोड़ाई  के बाद अगर संभव हो तो हुमिक एसिड का छिड़काव करना चाहिए इससे पुष्प और अच्छे से खिलते है ।

गेंदे का बाजार ( Marketing of Marigold flower)

जैसे कि हम जानते हैं गेंदे का आवश्यकता हमारे रोजमर्रा की जिंदगी में है ही । जैसे शादी विवाह, धार्मिक कार्यक्रमों, छठी सुख दुख के कार्यक्रम । हमारे हिंदू सभ्यता में हर घर में प्रतिदिन पूजा पाठ के लिए फूल की आवश्यकता पड़ता है । ऐसे में अगर कोई घरों में फुल पहुंचाने का कार्य करें तो वह एक अच्छा व्यवसाय हो सकता है । ऐसे ही मंदिरों के बाहर, धार्मिक स्थलों के बाहर दुकान लगाए जा सकते हैं ।

हर शहर में फूल का बाजार होता ही है , जहां से फुल लगाने से पहले एग्रीमेंट करके भी खेती किया जा सकता है । ऐसे में फूल विक्रय का समस्या नहीं होगा ।

फूल बेचने वाली दुकानों से भी चिल्लर फूल बेचने के लिए बात करके अलग-अलग दुकान वालों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में भी गेंदे का फूल बेच सकते हैं । इसका बाजार का समस्या इसलिए भी नहीं होगा क्योंकि इसकी खेती बहुत ही कम लोग कहते हैं इसलिए इसका डिमांड साल भर रहता है ।

मुख्य समस्याएं & उसका बचाव (Main Problems & Plant protection in Marigold Farming)

1. नर फूल वाले गेंदे का उदाहरण (फोटो)

  (Marigold Male Flower Problem)

gende mein nar ful ki samashya
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gende mein nar ful ki samashya
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गेंदे में नर फूल की समस्या बहुत बड़ी समस्या है क्योंकि इसका फूल बाजार में नहीं बिकता है । इस प्रकार के गंदे में पंखुड़िया सिर्फ किनारे में होते हैं और बीच में स्टिग्मा होता है। कुछ में तो एक भी पंखुड़ी नहीं होते हैं।  जोकि दिखने में आकर्षक नहीं होता और ना ही इसके माले बनाए जाते हैं । एक-एक पौधे लगाने पर नर फुल आ जाने से वहां का जगह खाली हो जाता है क्योंकि इसको उखाड़ देना ही उचित होता है ताकि प्रतिस्पर्धा पैदा ना हो ।

नर फूल की समस्या घर में रखे  हुए बीजों में तो आता ही है,  बाजार से खरीदा हुआ बीज , हाइब्रिड बीज में भी आता है ।

अगर घर के ही गेंदे से बीज बनाना चाहते हैं और उसमें नर फुल ना आए चाहते हैं,  तो अच्छे से पके हुए फुल साइज के गेंदा फूल का चुनाव करना चाहिए और बीज के लिए किनारे के ही पंखुड़ियों से लगे बीज का चुनाव करना चाहिए और मध्य का बीज को चुनना नहीं चाहिए ।

बीच में जो बीज होते हैं उसका अगर नर्सरी तैयार किया जाए तो वह मुख्य रूप से नर फूल ही निकलता है जो की खेती के लिए उचित नहीं होता।  5 से 10 परसेंट नर फूल निकलने का संभावना होता है ।

2. गेंदे की खेती में किट एवं रोग का नियंत्रण

लाल मकड़ी की समस्या 

इनका आक्रमण फूलों के खिलने के समय के आस पास होता है । इसके प्रभाव से गेंदे की पत्तियां जाली जाली जैसे दिखने लगते हैं जैसे उसमें सफेद रंग  की बहुत सारी  डॉट-डॉट जैसे आकार बन गए हो,  पास से देखने पर उसमें मकड़ी का जाल जैसे आकार दिखता है।

रोकथाम: Diamethoate या Chloropayriphos कीटनाशक का 1-1.5 ml / लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए । आवश्यकतानुसार छिड़काव को 10 से 15 दिन में दोहराया जा सकता है। 

गेंदे में थ्रीप्स की समस्या 

यह मुख्य रूप से हरे और काले रंग के होते हैं जिसमें काले रंग का ज्यादा हानिकारक होता है । Thrips  का अटैक ऐसा खेतों में ज्यादा होता है जहां मिर्च की खेती किया गया हो क्योंकि यह मिर्च का प्रमुख कीट है ।

इसके प्रभाव से पत्तियां अप साइट करलिंग up side curling  होने लगता है और पौधे का ग्रोथ रुक जाता है।  ऐसे लगता है जैसे कि कोई वायरस लग गया हो । पत्तियों को तोड़कर गौर से देखने पर निचली सतह में थ्रिप्स चलते हुए नजर आते हैं ।

सीरियस कंडीशन में इसका प्रभाव फूलों पर भी पड़ने लगता है और फूलों की क्वालिटी खराब कर देते हैं ।

रोकथाम: इसके रोकथाम के लिए स्टेमिक कीटनाशक का प्रयोग करना चाहिए जैसे Diamethoate , इमिडाक्लोप्रिड इत्यादि । लेकिन एक ऑर्गेनिक कीटनाशक इसका नाम खतरा (khatara) है उसका रिजल्ट इसके रोकथाम के लिए बहुत अच्छा है। Marigold crop mein 15 से 20 ml /sprayer इसका छिड़काव करना चाहिए। गेंदे की खेती

khatara kitnashak
khatara kitnashak 

 

कटुवा किट (Hairy Caterpillar / Tobacco caterpillar attack on Marigold)

यह इल्ली पत्तीयों को खाकर क्षति पहुंचाता है। और फूल के अंदर घुस के उसे खाने लगते है जिससे  फूल का आकार बदल जाता है।

tobacco caterpiller
tobacco caterpiller
tobacco caterpiller
tobacco caterpiller

रोकथाम: Diamethoate या Chloropayriphos कीटनाशक का 1-1.5 ml / लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए ।या Emamectin benzoate 15 gram / sprayer (16 लीटर) का छिड़काव करें।  आवश्यकतानुसार छिड़काव को 10 से 15 दिन में दोहराया जा सकता है ।

पौध गलन रोग (Damping Off of Marigold)

किस रोग में पौधे नर्सरी अवस्था में ही तना गलन होकर गिरने लगते हैं और मर जाते हैं ।

रोकथाम: जल निकास की उचित व्यवस्था करें तथा अधिक पानी से पौधों को बचाएं । मैनकोज़ेब/ कार्बेंडाजिम 2 ग्राम प्रति लीटर के दर से छिड़काव करें ।

झुलसा रोग/पौधे में लाल धब्बा (Leaf Spot of Marigold/ Blight of Marigold/ Bud Rot of Marigold)

पुराने व नीचे की पत्तियों पर छोटे-छोटे गोल भूरे रंग के  धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में पूरे पौधों को क्षति पहुंचाते हैं। Blight के  प्रारंभ में इनका प्रभाव सिर्फ पत्तियों में ही दिखाई देते हैं बाद में इसका प्रभाव तना पर भी पड़ने लगते हैं और तना कमजोर होकर गिर जाते हैं। और bud rot मैं पौधे का शीर्ष भाग में सड़न  हो जाता है और पौधे बढ़ना बंद कर देते हैं।

Stem Blight of Marigold
Stem Blight of Marigold

गेंदे की खेती

रोकथाम: मैनकोज़ेब दवा की 2 ग्राम प्रति लीटर पानी या Chlorothalonil 75 wp 25 ग्राम / sprayer , Hexaconozole 5%ec का 25-30 ग्राम प्रति sprayer छिड़काव करना चाहिए।

भुभुतिया रोग (Powdery Mildeu of Marigold)

गेंदे की पत्तियों पर मुख्य रूप से निकली पत्तियों पर सफेद पाउडर जैसे संरचना बन जाता है जिसको पाउडरी मिलडीयू  कहते हैं ।

रोकथाम: सल्फर पाउडर का छिड़काव करना चाहिए (Wettable sulphur)

गेंदे का उपज (Yield of Marigold)

अफ्रीकन गेंदे का उपज एकड़ में लगभग 60-70 क्विंटल/ एकड़ तथा फ्रेंच गेंदे का उपज 40-50 क्विंटल/ एकड़ आता है। फ्रेंच गेंदे में थोड़ा काम उत्पादन इसलिए आता है क्यूकी इसका फूल का साइज़ छोटा और हल्का होता है।

गेंदे का बीज उत्पादन (Seed production techniques of Marigold)

बीज उत्पादन दो प्रजातियों के बीच आइसोलेषन डिस्टेंस लगभग 0.6 कि.मी. का होना चाहिए।

ठंड की फसल से बीज बनाना अधिक उपयुक्त होता है।

पुष्प के खिलते ही चुनाव कर लें।

पकने पर सुखाकर उनकी बाहर की एक दो परत का बीज रखें बाकी फेंक देना चाहिए।

Marigold Cost of Cultivation (gende ki kheti mein kul kharch kitna aata hai)

Marigold Cost of Cultivation

गेंदे की खेती में आने वाले सम्पूर्ण खर्चों/ गेंदे की खेती का लागत के बारे में ऊपर table में बताया गया है। यह छत्तीसगढ़ का data है। आपके अलग अलग क्षेत्रों के हिसाब से ये खर्च काम ज्यादा हो सकता है।

Read more articles about marigold farming :

Cultivation Instructions for Marigold Seeds- Namdhari Seeds Pvt Ltd

We explained about Double orange African marigold seed purchased from namdhari seeds pvt. lmt. (seed growing Instruction given in seed packets).

Nursery Practices

Bring the soil of nursery beds to fine texture and mix well rotten compost along with small proportion of the sand. Make grooves 7-8 cm apart to a depth of 0.50 cm on the plain beds. Sow the seeds in these drooves and cover with thin layer of compost.

Water the bed with Capton solution 3 gram/ liter and cover with news paper sheets have to be removed, preferably during evening hours. Seeds can be sown plug trays with coir peat too to get seedlings with root ball. After germination the plants would be ready for transplanting to flower beds or big pots in three weks times.

Growing Instruction

after transplanting the seedlings to beds or pots, fertilizer application in solution form 1 gram of 17:17:17 N:P: K / liter of water has to be followed for better growth of plants. The first dose can be started from 10th day after transplanting. Drenching with Bavistin or Ridomil at 1.50 gram/ liter, once in 15 days in advised during rainy season to protect the plants from fungal diseases.

To keep the sucking insect pest at bay alternate spraying of Dimethoate and Chloropyriphos at 1 ml/liter of water at 15 days interval would suffice.

Sowing season

In mild climates, Marigolds can be grown round the year with slightly better care during the summer months. In the plains of south India Marigold can be grown round the year. In central and North India Marigolds can be sown in June – August and January – February and grown Successfully.

Seed germination- 70%

Physical Purity (min)- 98%

You Tube Videos Regarding Marigold Farming

Marigold Flower Cultivation Practices and General Information By ICAR Related Institute ACHARYA N.G RANGA AGRICULTURAL UNIVERSITY (ANGRAU), 9C6M+GF8, Administrative Office, Amaravathi Rd, Lam, Guntur, Andhra Pradesh 522034

By-

Dr I.V.Srinivasa Reddy
Assistant Professor
Department of Horticulture
Agricultural college
Aswaraopet

Introduction of Marigold

Marigold is one of the most popular flowering annuals cultivated in India. It is gained popularity amongst gardeners and flower dealers on account of its easy culture-wide adaptability, wide attractive colors, shapes size, and good keeping quality. In Andhra Pradesh Marigold is extensively used as loose flower for making garlands for religious and social functions.

Importance of Marigold

  • It is useful for floral decorations and floral arrangements.
  • Used in mixed herbaceous borders and bedding, cut flower, and pot
    culture.
  • For religious offerings and French marigold is most ideal for rockery, edging hanging Baskets, and window boxes.
  • Both leaves and flowers are equally important from a medicinal point of view leaf paste is Used externally against boils and carbuncles. Leaf extract is a good remedy for earache.
  • Flower extract is considered a blood purifier, a cure for bleeding piles, and also a good remedy for eye diseases and ulcers.
  • Oil extracted from Tagetus can find used in the perfume industry.
  • Extracts are used as a natural dye.
  • African marigold represents “vulgar minds” whereas French marigold is a symbol of “Jealousy”
  • Marigold is also known as the friendship flower in the United States.

Species, Types, and Cultivars of Marigold

There are about 33 species of the genus Tagetus. Among all the species the following two species are important and suitable for
commercial cultivation.

Botanical name of Marigold

Tagetus erecta – African marigold
Tagetus Patula – French marigold

Family of Marigold

Compositae

Origin of Marigold

Central and South America and Mexico

1. African Marigold (Tagetus erecta)

The plant is tall and hard.

Flowers are single to fully double and large-size globular heads. Flower color varies from lemon yellow to yellow, golden yellow or
orange. (90cm tall, erect, branched). It is a diploid, 2n=24. From a commercial point of view, African marigold is in greater demand as
compared to French marigold.

Ex. Giant double African yellow, Giant double African orange (Early orange and Early yellow are commercially cultivated in West Bengal and Orissa). Cracker Jack, Zinnea gold, Gold coin, Yellow supreme, Man in the Moon.

2. French Marigold (Tagetus patula)

The plant is dwarf bushy, flowers are small either single or double. Flower color varies from yellow, orange, reddish brown, and golden yellow to bicolor. Foliage is dark green with reddish stem. (30 cm tall bush). It is tetra ploidy 2n=48. Important cultivars: yellow boy, Harmony Boy, Red Brocade, little devil bicolor, little devil yellow, Butterscotch, Royal Bengal, Queen Sophia, and Tangerine.

Dwarf varieties of African Marigold: Apollo, Aztee, Golden Age, Spun gold, Spun yellow, Guys and Dolls, Happiness, Dolly, Pot -o- gold. Important varieties of French Marigold: They are easy to grow and bloom earlier than African types. Sparky, Spanish brocade, flame, flaming of fire, orange flame, and star of India. The important varieties of triploid varieties are showboat; sever star (T. erecta x T. patula) most of them are used as pot mums.

Important improved Indian varieties of Marigold

1. Pusa narangi Gainda – Cracker Jack x Golden Jubilee – Suitable for garland.
2. Pusa basanti Gainda – Golden yellow x Sun giant – Suitable for pots and beds in the garden.

Propagation of Marigold

Marigold is (commonly) generally propagated either by seed or by herbaceous cutting.

By Seed

Seed rate for marigolds varies from 0.8 – 1 kg / Acre (2-2.5 kg /hectare). Seed propagation is very common because readily available and germinates quickly Marigold seeds are sown in raised seedbeds or pots or seed pans. During preparation of nursery bed, 8-10 kg of well-decomposed cow dung manure per m2 of bed is thoroughly mixed with the soil.

The width of the seedbed should not be more than 1.2 meters and the height should be 15 cm.

During the winter, the beds are covered with a layer of straw to accelerate the germination process. Seeds are sown thinly without overcrowding. Seeds germinate well at temperatures from 18 to 30 0 C. Seeds take about 5-7 days for germination.

Sowing time

Marigolds can be raised thrice in a year, i.e. rainy, winter, and summer season.
Rainy Mid – June      Mid – July
Winter Mid – September     Mid –October
Summer Jan – Feb      Feb –March

By cuttings (Herbaceous)

Cuttings are generally used for the perpetuation of a particular plant (or) cultivars. About 6 – 10 cm long cuttings are made from the apical portion of the shoot and kept for rooting. Herbaceous cuttings each with one or two pairs of leaves are inserted in sand medium either in a seed pan or nursery bed.

Before putting the cuttings in the rooting medium the basal portion of the cuttings is treated with Seradix B – 1 or Rootex – 1 to encourage profuse and early rooting. Regular watering should be done to keep the bed in moist condition within 8 – 10 days, rooting is observed in the cuttings, which are later used as planting material.

Varieties like Giant African yellow, Giant African Orange
does not set seed therefore these are usually multiplied by herbaceous cuttings.

Soil and Climate for Marigold

Marigolds can be grown in a wide range of soils, except in water logging situations. However, deep fertile soil having good water holding capacity well-drained, and near to neutral in soil reaction (PH: 7.0 – 7.5) is most desirable. An ideal soil for marigold cultivation is fertile sandy loam. It requires a mild climate for luxuriant growth and flowering.

High temperature affects the growth besides reducing flower size and number. In severe winter plants and flowers are damaged by frost. Therefore depending onenvironment planting is done.

The environmental conditions after seedlings are transplanted greatly influence growth and flowering. A mild climate during the growing period (14 – 28 0C) greatly improves flowering while higher temperatures (28 – 36 0C) adversely affect flower production. Selection of Site: A sunny location is ideal for marigold cultivation. Under shade marigold plants produce more vegetative growth and do not produce any flowers.

Transplanting of Seedlings of Marigold

One-month-old seedlings with 3 to 4 leaves are fit for transplanting. Watering the nursery bed one day prior to uprooting will lessen the damage to the root system. Transplanting should be done on well-prepared land and soil should be pressed around the root zone to avoid air pockets. After temperature, a light watering with a rose can be done.

Spacing of Marigold

An African marigold – for seedling plants 40 x 30 cm spacing should be given while for rooted cuttings 30 x 20 cm is found to be ideal. French marigold – 20 x 20 cm or 20 x 10 cm.

Irrigation for Marigold

Depending on soil and weather conditions, the crop should be irrigated at least once a week during winter and once in 4-5 days during summer. It takes about 55 – 60 days to complete vegetative growth and enter into the reproductive stage. At all stages of vegetative growth and during flowering production sufficient amount of moisture in the soil is essential. Water stress adversely affects normal growth and flowering.

Manures and Fertilizers for Marigold

FYM/cow dung @ 20 T/ Acres (50 T/hector) should be applied during wind preparation. Besides 40 – 80 kg of K20 per acre should be applied (100 – 200 kg N, 200 kg P2, and 200 kg of K2/hector). Half of the N, the entire dose of pad K should be applied as a basal dose, preferably one week after transplanting, and the rest of half nitrogen should be applied one month after the first application.

Intercultural Operation

In marigolds control of weeds is an important operation if the weeds are not removed in time, a great loss would occur in terms of growth and productivity and weeding should be done 3 to 4 times during the crop period.

Pinching

In tall cultivars of African marigold plants first, grow upwards to their final height and later on produce a terminal flower by apical dominance. After the formation of terminal flower buds, axillary’s branches develop which also bear flowers. However if the apical portion of the shoot is removed early, a large number of axillary shoots arises resulting in a well-shaped bushy plant bearing more uniform-sized flowers.

Removal of the apical portion of the shoot is known as ‘pinching’ It is observed that pinching 40 days after transplanting enhances flower yield. However Giant double African yellow and orange do not require pinching, as the plants are bushy and branching type.

Harvesting of Marigold

Marigold flowers are plucked when they attain full size. Harvesting should be done either in the morning or evening hours. A field should be irrigated before harvesting flowers so that the flowers keep well for a longer period after harvest. The plucked flowers are collected in polythene bags, jenny bags, or bamboo baskets for carrying to market.

Yield (Fress Flower of Marigold)

The yield of flowers in African and French varies in cultivars cultural practices adopted, spacing and fertilization, etc. On average the yield of French marigolds and African marigolds varies from 8 to 12 T/hector and 11 to 18 T/hector respectively. Normally 10 – 15 T/hector flower Giant African yellow may give 25 T/hector.

Yield (Dry Seed of Marigold )

African – 120 – 150 kg/Acre (300 – 375 kg/ha)
French  400 – 500 kg/Acre (1000 – 1250 kg/ha)
Seeds should be collected in winter only.

References: 

  • ACHARYA N.G RANGA AGRICULTURAL UNIVERSITY (ANGRAU)
  • By-Dr I.V.Srinivasa Reddy, As sistant Professor, Department of Horticulture, Agricultural college, Aswaraopet
  • Popmlets of IGKV Raipur C.G.
  • आभार- डाॅ.गौरव शर्मा (sir)
  • पुष्प विज्ञान एवं भू-दृष्यवास्तुकला विभाग इं.गां.कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर
  • Namdhari seeds
  • किसान- श्री नरेश बंजारे/ स्व. श्री कन्हैया लाल ग्राम भथरी जिला मुंगेली छत्तीसगढ़ का अनुभव

FAQ

गेंदे का फूल कितने दिन में तैयार हो जाता है?

लगभग 20 दिनों में नर्सरी पौध रोपण के लिए तैयार हो जाता है। और अगर 20-25 दिनों के पौधों का रोपण करें तो लगभग 1.5 से 2 माह में फूल आना शुरू हो जाता है।

गेंदे के बीज कैसे लगाए जाते हैं?

बीज लगाने के लिए नरम मिट्टी का चुनाव कर , खरपतवार हटा कर , 1 मीटर चौड़ा तथा 3 -4 मीटर लंबा क्यारी में सड़ी हुई गोबर खाद मिलकर , लाइन से sowing करना चाहिए ।

गेंदा का पौधा कब लगाना चाहिए?

गर्मी में 01 से 15 जनवरी तक नर्सरी लगाना चाहिए तथा बरसात में 15 जून -30 जून तक नर्सरी लगा देना चाहिए। नर्सरी में पौधा लगभग 20-15 दिनों में लगाने लायक हो जाता है।

गेंदा को बीज से उगाने में कितना समय लगता है?

3 से 4 दिनों में बीज में अंकुरण आ जाता है। तथा 5 से 7 दिनों में मिट्टी के ऊपर निकला हुआ पौधे दिखने लगतें है।

गेंदे के पौधे को जल्दी बड़ा कैसे करें?

नर्सरीअवस्था में पौधों में DAP+Potash का उपयोग करना चाहिए इससे पौधों में जड़ का विकास अच्छा होगा। पौधे लगाते समय DAP डालकर लगाने से ग्रोथ अच्छा होगा और पौधा मजबूत रहेगा। पौधे लगाने के 10 -12 दिन बाद एक कूड़ाई अवश्य करें।

क्या गेंदे को धूप की जरूरत होती है?

हाँ । गेंदे के लिए धूप बहुत जरूरी होता है। छाया वाले स्थान पर लगाने से वानस्पतिक वृद्धि तो होगी, पत्ती चौड़ी भी हो जाएगी लेकिन फूल समय में नहीं आएगा और बहुत काम मात्रा में आएगा।

How long does it take for marigolds to grow?

Almost 20 days are required for nursery development. Then it should transplant. Flowering initiation started from 45 days to 60 days to transplanting. After flowering starts it gives regular flowers for 3 months, it depends on your care.

What is the average yield of marigold?

The yield of flowers in African and French marigolds varies in cultivars cultural practices adopted, spacing and fertilization, etc. On average the yield of French marigolds and African marigolds varies from 8 to 12 T/hector and 11 to 18 T/hector respectively. Normally 10 – 15 T/hector flower Giant African yellow may give 25 T/hector.

What is the crop duration of marigolds?

About 4 to 6 months depending on crop care.

What is the growth rate of marigold?”

Seed germination starts within 4-6 days and 15 to 20 days are required for the nursery ready for transplanting, and after transplanting about 1.5 months are required to start flowering.