धान पेनिकल माइट किट (Panical Mite of Paddy)
धान का पेनिकल माइट को ही ही कई किसान भाई लाल मकड़ी भी कहते हैं।
प्रायः यह देखा जा रहा है कि #सितम्बर-अक्टूबर माह में जब धान की बालियां निकलती है तब धान की बालियां बदरंग हो जाती है। जिसे छत्तीसगढ़ में ‘बदरा’ हो जाना कहते है इसकी समस्या आती है।
धान का पेनिकल माइट का मुख्य लक्षण –
इससे प्रभावित धान की बाली बदरंग / भूरा जैसे रंग का हो जाता है । धान के पेड़ पर भूरा रंग का झुलसा जैसा लक्षण आ जाता है । इस किट का प्रभाव धान जब निकलने वाले होते हैं तभी निकलने से पहले ही हो जाता है , जिसके कारण जब धान की बाली निकलती है तब उसमें दूध नहीं रहता , जिसके कारण बदरा आता है , बाली का दूध चूस लेने के कारण बाली काला पड़कर सूखने लगता है ।
सबसे अच्छा पहचान इसका – जब आपको ऊपरोक्त लक्षण दिखे तो मोबाईल के डिस्प्ले जो काला होता है में प्रभावित बाली को झड़ाने पर बहुत छोटा छोटा मकड़ी जैसा माइट गिरता है , जो चलते हुए नजर आता है ।
धान में पर खतरों के बादल आ सकते हैं, खुली नजरों से नहीं दिखने वाले यह किट पिछले 3-4 वर्षों से हानिकारक हो गए हैं और किसानों के फसलों पर पानी फेर रहे हैं। मकड़ी और बैक्टीरिया धान की फसल को बर्बाद कर नुकसान पहुंचा रहा है। इससे धान की जो फसल नष्ट हो जाती है, उसे तो बचाया नहीं जा सकता, किन्तु समय रहते इसकी पहचान हो जाती है तो फसलों को उपचारित कर बचाया जा सकता है। वहीं सभी किसानों को भी अलर्ट रहना होगा, क्योंकि #छत्तीसगढ़ की पहचान धान है और ये कीट व्याधि छिपकर इसी पहचान पर हमला कर रहे है।
1.पेनिकल_माइट एक सूक्ष्म अष्टपादी जीव पेनिकल माइट के कारण होता है।
2. बैक्टीरिया (बैक्टीरियल पेनिकल ब्लाइट) धान की लीफ़ शीथ और बालियों पर मकड़ी के खरोच से निर्मित घाव के माध्यम से बैक्टीरिया पौधे के अंदर आसानी से प्रवेश करते हैं। शुष्क वातावरण में 30-35 डिग्री सेल्सियस तापमान एवं 80-85 प्रतिशत सापेक्ष आद्रता पर मकड़ी और बैक्टीरिया दोनों ही तेजी से गुणन करते है और पेनिकल (बालियों) को संक्रमित कर बदरंग और बदरा कर देते है। स्थानीय किसान इसे पोची व बदरा कहते है।
3. धान की बाली बदरंग एवं बदरा- धान की बाली में बदरा या बदरंग बालियों के लिए पेनिकल माईट प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। पेनिकल माईट अत्यंत सूक्ष्म अष्टपादी जीव है जिसे 20 X आर्वधन क्षमता वाले लैंस से देखा जा सकता है।
4. यह जीव पारदर्शी होता है तथा पत्तियों के शीथ के नीचे काफी संख्या में रहकर पौधे की बालियों का रस चूसते रहते हैं जिससे इनमें दाना नहीं भरता।
इस जीव से प्रभावित हिस्सों पर फफूंद विकसित होकर गलन जैसा भूरा धब्बा दिखता है। माईट उमस भरे वातावरण में इसकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है। ग्रीष्मकालीन धान की खेती या पुराने फसल अवशेष के द्वारा यह एक मौसम से दूसरे मौसम की फसल पर अपनी उपस्थिति बनाए रखता है, बीजों में भी यह सुशुप्तावस्था में रहता है। जलवायु में आ रहे परिवर्तन की वजह से इस नए प्रकार की समस्या का प्रादुर्भाव धान की खेती में देखने में आ रहा है जिसके लिए सजग रहने की आवश्यकता है।
धान का पेनिकल माइट के लिए दवाई
इससे बचने के लिए गभोट अवस्था में या प्रकोप के शुरूआती अवस्था में ही “माईट” के नियंत्रण हेतु इनमें से किसी एक दवा का छिड़काव कर सकते है।
■Abamectin 1.8 %EC 100 ml प्रति एकड़
या
■ Propergite 57% EC 500 ml प्रति एकड़
या
■ Dicofol 18.5%EC 1liter प्रति एकड़
या
■ Ethion 50% EC 500 ml प्रति एकड़
या
■ Spiromesifen 22.9% SC 150 ml प्रति एकड़
या
■Haxythiazox हेकसीथियाजोक्स 5.45 % w/w Ec 250 ml प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते है।
और + Tagmycin या Ecomycin या Plantomycin एंटीबायोटिक दवा को 30 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते है।
नोट- यह शुरुआती दौर पर नियंत्रित कर फसल को बचाया जा सकता है।
यदि आपके खेत मे भी यह समस्या आया था, तो आपने कैसे इसका समाधान किया इसका अनुभव अवश्य साझा करें।
नोट – धान फसल में प्रति एकड़ 10-12 स्प्रेयर(16लीटर क्षमता) छिड़काव करें ।