परिचय– इस किसान का नाम श्री नरेश कुमार पिता स्वर्गीय श्री कन्हैया लाल है। आप ग्राम सेवकपुर, तहसील लोरमी विकासखंड लोरमी जिला मुंगेली छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं। आपके पास स्वयं का 17 एकड़ खेत था और अभी 51 एकड़ खेत है जिसे आप लोग खेती की कमाई से लिए हैं , आप लोग तीन भाई हैं और संयुक्त रूप से रहते हैं और अभी लगभग 120 एकड़ में खेती कर रहे हैं। बांकी जमीन अधिया रेगहा लेते हैं।
इन किसान से मैं व्यक्तिगत रूप से कई बार मुलाकात किया हूं इनका व्यवहार रहन-सहन इतना सामान्य है कोई घमंड या फिर किसी भी चीज का इनको टेंशन नहीं रहता है बहुत ही फ्री नेचर के मिलनसार किसान हैं।
3 भाई है और तीनों एक साथ खेत में काम करते हैं उनकी पत्नियों भी उनकी खेती में सहयोग करते हैं, तीनों भाइयों की शादी हो गई है उसके बाद भी संयुक्त रूप से रहते हैं और एक साथ खेती का काम करते हैं यह भी एक बहुत ही अच्छी बात है।
यह किसान बीएससी तक पढ़ाई किए हैं और अपने बच्चों को बहुत अच्छा शिक्षा दिला रहे हैं। इनका एक लड़का और तीन लड़की है। इनका मानना है कि अगर आज हम बच्चे को अच्छे से पढ़ाएंगे तो उनका भविष्य बहुत अच्छा होगा और उनके भविष्य अच्छा होने से हमारा भी भविष्य बहुत अच्छा होगा इसलिए सभी को जितना अच्छा हो सके पढ़ाई कराना जरूरी है।
इनके पास स्वयं का दो ट्रैक्टर जो कि जॉन डियर ट्रैक्टर है और दो सेट ड्रिल मशीन एक थ्रेसर मशीन 1 रोटावेटर 1 पावर स्प्रेयर और लगभग 6 बैटरी स्पेयर है।
यह किसान खरीफ में पूर्ण रूप से धान, मक्का, अरहर की खेती करते हैं, धान में हमेशा अर्ली वैरायटी धान लगाते, ज्यादा अवधि की धन नहीं लगाते हैं ताकि फसल जल्दी कट सके और दूसरी फसल की तैयारी शुरू कर सके।
धान के खेत के मेड में अधिकतर किसान कुछ भी नहीं लगाते हैं जबकि यह किसान धान के खेत के मेड में खरपतवार नाशक डालकर पूरा अरहर लगाता है ताकि जमीन का पूर्ण रूप से उपयोग हो सके, इनका मानना है कि लगभग 7 से 10% खेत का जमीन मेड के रूप में व्यर्थ हो जाता है तो क्यों न पूर्ण जमीन का सही उपयोग किया जाए और उससे कुछ आमदनी लिया जाए।
यह किसान कभी भी देशी किस्म का चयन नहीं करता है भले ही देशी किस्म कम पैसे पर आ जाता है लेकिन वह उत्पादन नहीं देता है, बहुत सारे किसान हमेशा कोई पुरानी बीजों को जो आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, इस बीज का उपयोग करते हैं, कम उत्पादन देने वाली खराब क्वालिटी का बीज का उपयोग करने से ना अच्छे से उत्पादन आता है और ना ही इसका गुणवत्ता अच्छा होता है , इसलिए बाजार में अच्छे मूल्य भी नही मिलता।
इसलिए यह किसान हमेशा रायपुर या अन्य जगहों से अच्छे किस्म के बीज खरीदकर लगाते हैं।
यह किसान हमेशा कीटनाशकों का खरीदी होलसेल दुकान से करता है क्योंकि वहां से इनको बहुत ही कम रेट पर अच्छी क्वालिटी की दवाई मिल जाता है। किसान कीटनाशकों का या किसी तकनीक का उपयोग यह किसान किसी कृषि अधिकारियों के मार्गदर्शन से करते हैं और कई पुस्तक पढ़ते हैं जो कृषि से संबंधित हो और उनसे सीखने हैं। इनका मानना है कि जब हमको खेती ही करना है तो फिर खेती की अच्छे-अच्छे किताबें पढ़ा जाए और उसे सीखा जाए, उससे लागत भी कम लगता है और उत्पादन भी अच्छा बढ़ता है।
यह किसान खरीफ में धान मक्का और अरहर की खेती करते हैं और रबी सीजन में सरसों और चने की खेती करते हैं। चने की खेती ज्यादा करते हैं और जैसे चने की कटाई होती है फिर उसमे तीसरा फसल मतलब जायद में मूंग और उड़द की खेती करते हैं। इस प्रकार से यह किसान खेत का संपूर्ण उपयोग करते हैं और साल में तीन फसल लगाते हैं।
चूंकि यह किसान लोकल किस्म का उपयोग नहीं करते हैं इसलिए इनका धान का उत्पादन और अन्य फसलों का उत्पादन भी अन्य किसानों के तुलना में बहुत ही अच्छा होता है।
इनका धान का उत्पादन आराम से 27 से 30 कुंतल तक आ जाता है कई बार तो इनका 35 कुंतल तक भी धान का उत्पादन आता है प्रति एकड़ में। यह किसान प्रति एकड़ चने को 8 से 10 क्विंटल और कई बार तो 12-12 क्विंटल तक चने का उत्पादन लेते हैं और वैसा ही से मूंग उड़द में भी 8 से 12 क्विंटल के बीच में उत्पादन लेते हैं।मक्के में सामान्य किसान 20-25 क्विंटल उत्पादन लेते हैं तो यह लगभग 30-35 quintal तक लेते हैं।
इस किसान का मानना है कि समय में फसल की बोनी करने से मजदूर की समस्या नहीं होती , क्योंकि मजदूर उस समय फ्री रहते हैं जब अन्य किसानों के खेत में मजदूरों की आवश्यकता नहीं रहती। क्योंकि वह समय में बोनी नहीं करके थोड़ा लेट करते हैं। खेती में सबसे बड़ी समस्या मजदूर के है अगर समय में मजदूर नहीं मिला आपको खेती में काफी नुकसान हो सकता है।
यह किसान मजदूरों को अन्य पड़ोसी गांव से अपने खेत में काम करने के लिए लाते हैं और उनके लाने के लिए भी साधन स्वयं भेजते हैं ताकि मजदूरों को आने जाने में दिक्कत ना हो इस कारण से मजदूर उनके खेत में आसानी से काम करने के लिए आते हैं।
यह किसान बीज निगम से एग्रीमेंट कर बीज उत्पादन कार्यक्रम में भाग लेते हैं जिसके कारण से इनको अपने सभी फसल का रेट समर्थन मूल्य से ज्यादा मिलता है, आनाज वाली फसल में इनको प्रति क्विंटल ₹500 और दलहनी तिलहनी फसलों में इनको समर्थन मूल्य से प्रती क्विंटल ₹800 अतिरिक्त लाभ मिलता है। इस प्रकार यह किसान अधिक लाभ अर्जित करते हैं।
मूंग और उड़द की खेती में मुख्य प्रॉब्लम येलो वेंन मोसेक वायरस का है जिसके कारण से इसकी पत्तियां हरी पीली रंग की हो जाती है, इसमें फलियां नही लगती, अगर इसे प्रतिरोधक किस्म को लेकर खेती किया जाए तो यह प्रॉब्लम नहीं होती है और फसल का उत्पादन बहुत अच्छा आता है इस कारण यह किसान प्रतिरोधक किस्म को ही बाजार से लेकर उनकी खेती करते हैं और अच्छे उत्पादन लेते हैं।
इस प्रकार यह किसान कम जमीन से अच्छी कमाई करके अगल-बगल वाले किसानों के खेत को अधिया रेगहा में लेते थे और उसमें तीन फसल उगा करके अच्छी कमाई करते गए और इसके पैसे से गांव में जिनका भी खेत बिकता गया उनको खरीदने गए और इस प्रकार से वह 17 एकड़ को आज के टाइम में 51 जमीन बढ़ा लिए और अभी 121 एकड़ में अधिया रेगहा लेकर की खेती करते हैं तो इनको लाखों रुपए की कमाई होती है।
सिंचाई के लिए यह किसान स्प्रिंकलर पाइप, पेट्रोल पंप और ट्यूब वेल का उपयोग ज्यादा करते हैं।
और अब यह किसान फलों और सब्जियों की खेती ड्रिप विधि से मल्चिंग का उपयोग से भी शुरू करने के बारे में सोच रहें हैं।
किसान भाइयों को इनका सलाह-
1. जमीन का अधिक से अधिक उपयोग करते हुए साल में 3 फसल जरूर लेना चाहिए।
2. पशु पालन करना चाहिए और उसके गोबर से केचुवा खाद बनाकर फसलों में उपयोग करना चाहिए।
3. फ्री और सस्ते बीजों का उपयोग नहीं करना चाहिए। अच्छे किस्मों का प्रमुख रोग प्रतिरोधक एवं अच्छे उत्पादन देने वाले किस्मों का चयन करना चाहिए।
4. कृषि संबंधित खेती किसानी का अच्छी बुक amazon से मंगाकर पढ़ना चाहिए।
5. खेत में DAP के साथ में पोटाश, सल्फर और बोरान का जरूर उपयोग करना चाहिए। अधिकतर किसान DAP और यूरिया तक सीमित रहते हैं।
6. अगर मिल सके तो गांव के गौठान से गोबर थोक में खरीदकर उससे गोबर खाद या केचुआ खाद बनाकर अपने खेत में डालना चाहिए , जिससे खेत का उर्वरक क्षमता बढ़ेगा। जल धारण क्षमता भी बढ़ेगा।